कुण्डली/छंद

कुंडलिया छंद

कुण्डलिया छंद:-

एक बला की सादगी, दूजे चंचल नैन।

दोनों मिलकर लूटते, कर देते बेचैन।।

कर देते बेचैन, तुम्हारे बिंदिया, काजल।

रुनझुन की झनकार, करे पांवों की पायल।।

शब्दों में न समाय, रूपता गृह-कमला की।

हिय पर करती राज, सुंदरी एक बला की।।

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कुंडलिया:-

 

झर-झर झरती चाँदनी, भीगा हरसिंगार।

रजनी भीगी नेह से, पा प्रीतम का प्यार।।

पा प्रीतम का प्यार, मन कमलिनी खिल जाती।

तितली खोले पंख, उड़ें इत उत  इतराती।।

दिव्य प्रेम का रूप, जगत दे आलोकित कर।

आज धरा है स्वर्ग, हर्ष है झरता  झर-झर।।

 

अनिता