चेहरों के पीछे के चेहरे न पूछो..
चेहरों के पीछे के चेहरे न पूछो।
मिले जख्म कितने गहरे न पूछो॥
आजाद हर कोई दिखता है लेकिन।
हैं सांसों पे भी कितने पहरे न पूछो॥
काले हैं दिन काली रातें हैं केवल।
कहां खो गये दिन सुनहरे न पूछो॥
नही देखता एक दूजे को कोई।
क्यूं सब हो गये अंधे बहरे न पूछो॥
गुज़र तो रही हैं चाहे जैसी गुज़रे।
क्यूं हैं सोच पर भी पहरे न पूछो॥
गिरने की अब कोई हद ही नही है।
क्यूं बन बैठे हाकिम लुटेरे न पूछो॥
इंसांनियत के तेरे इस जहां में।
क्यूं शैतानियत के हैं फेरे न पूछो॥
सतीश बंसल