मेडिकल कौंसिल ऑफ़ इण्डिया (एम.सी.आई.) बेताल के निशाने पर
हमेशा की तरह सम्राट विक्रमादित्य रात्रि में सीमेंट कांक्रीट के उस जंगल से गुजर रहे थे, जहां कभी बियाबान जंगल हुआ करता था I जंगल के अन्तिम सिरे पर मौजूद श्मशान पहले की तरह आज भी विद्यमान था I
हमेशा की तरह बूढ़े पीपल के वृक्ष से निकलकर बेताल अचानक से सम्राट के कन्धे पर सवार हो गया और वह अनेक तथ्यों तथा पेचीदगियों से भरपूर कहानी सुनाने लगा I सुन विक्रम, पुण्यभूमि भारत नाम के देश में मध्यप्रदेश नाम का एक प्रदेश था I वहां के कुछ ख़ास शहरों में प्रतिभाशाली विद्यार्थी नागरिकों को रोगमुक्त करने की विधा मेडिकल कॉलेज नाम के संस्थानों में सीखते थे I उनकी शिक्षा – दीक्षा की नियंता “भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद्” नाम की संस्था थी, जो मध्यप्रदेश के अलावा सभी प्रदेशों के संस्थानों पर नियन्त्रण रखती थी I उसका काम था, सभी कॉलेजों में शिक्षा का स्तर एक समान हो, ताकि देशभर के नागरिकों का स्वास्थ्य अच्छा रहे I इसके लिए वह साल में दो तीन बार हरेक कॉलेज का दौरा अपने विश्वसनीय, चालाक और समझदार प्रतिनिधियों से करवाती थी I विद्यार्थियों की संख्या को ध्यान में रखते हुए, अनुभवों के मद्देनजर वरिष्ठता की दृष्टि से हर स्तर के शिक्षकों की आनुपातिक आदर्श संख्या तय की हुई थी, ताकि प्रत्येक विद्यार्थी को रोगमुक्ति के विज्ञान की बारीकियां व्यक्तिगत स्तर पर मिलती रहना सुनिश्चित किया जा सके I वाचनालय, व्याख्यान कक्ष, रोगियों के विशाल कक्षों आदि की संख्या और क्षेत्रफल तक तयशुदा था I शौचालय तक की तस्दीक की जाती थी I वाचनालय में पुस्तकों की संख्या पर भी उसका कठोर नियन्त्रण था I शिक्षा – दीक्षा के लिए जरूरी उपकरणों की विशेषताओं पर भी पूरा नियन्त्रण था I उस महान संस्था ने पूरे भारतवर्ष में प्रत्येक वर्ष शिक्षा दीक्षा का शुभारम्भ यानी सत्रारम्भ एक निश्चित तिथि पर एक साथ होना तय कर रखा था I शिक्षकों की पदोन्नतियां भी उसके बनाए नियमों से होती थी I उन्हें अपनी पदोन्नति के लिए शोध करना पड़ता था I हालांकि अधिकांशत: ऐसे शोधों में विश्व के अन्य वैज्ञानिकों द्वारा पहले से की गई शोधों को सत्यापित किए जाने की बातें होती थी I देश, काल और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए शोध नगण्य होते थे I सीधे शब्दों में कहें तो शोध एक किस्म की औपचारिकता बनकर रह गए थे I यह भी बात सर्वव्याप्त थी कि कुछ शोध पत्रिकाएं पैसे लेकर बिना शोध के ही शोध पत्र छाप देती थी I
समय बदला, रोग बदलें, ज्ञान का विस्फोट हुआ I विद्यार्थी समय से पहले अनेक बातें जानने लगे I इन्फार्मेशन तकनीकों के जरिये जानकारियों की भारी भरकम बरसात होने लगी I विदेशी खाद्यों, सभ्यताओं, भोगों और रहन सहन की विधियों के कल्पनातीत आक्रमण हुए I उनकी साथ साथ चोली दामन की तरह चस्पा नए रोगों की भी खूब आवक हो गई I कुपोषण ने महामारी की तरह पैर पसार लिए, लाखों लोग कुपोषण और उससे होने वाले कई तरह के रोगों – महारोगों से मरने लगे I देश के एक प्रधानमंत्री ने उसको राष्ट्रीय शर्म ही घोषित कर दिया I और वह राष्ट्रीय शर्म देश की स्वास्थ्य सेवाओं को नि:शब्द शर्मसार करती रही I
सिक्के के दूसरे पहलू के तहत विदेशियों में भी भारत के प्रति जिज्ञासा बढ़ने से भारतीय जीवनचर्या, खाद्य सामग्री और आयुर्वेद के सिद्धान्तों पर जमकर शोध होने लगे I ताम्बे के बर्तन में रखें जल पर शोध हुआ, तो कढी पर भी हुआ, हल्दी, दही और गौउत्पादों पर जमकर शोध हुए I रसोईघर के मसालें कैंसररोधी और एंटीआक्सीडेंट सिद्ध हो गए I तुलसी बेमिसाल हो गई I कड़वे नीम ने चिकित्सा की दुनिया में मिठास घोल दी I सुबह जल्दी जागने को पुख्ता वैज्ञानिक आधार मिल गया I भारतीय शौच शैली ने कमोड को विज्ञान के अखाड़े में पछाड़ दिया I ऐसे अगणित शोधों के परिणामों से समूचे विश्व को पता चला कि भारत का विज्ञान बहुत ही उन्नत रहा है तथा वे और भी ज्यादा शोध कर अपने नाम से पेटेन्ट करवाने लगे I गाय, तुलसी, पीपल, और पूजा के वृक्षों के आभामण्डल मापे गए I अग्निहोत्र से रोगकारी बैक्टीरिया मरते हैं और मित्र बैक्टीरिया की संख्या में इजाफा होता है, इसे विज्ञान ने सिद्ध कर दिखाया I
साल बीते, दशक बदलें I नहीं बदला तो एम.सी.आई. का नजरिया I विद्यार्थी नजरअंदाज किए जाते रहे I शिक्षकों की गिनती तो पहले की तरह बराबर जारी रही, परन्तु शिक्षा का स्तर कितना नीचे जा चुका है, इसके प्रति निरपेक्षता बनी रही I
अब मैं तुझे बताता हूं, उस प्रान्त की जिसमें इन दिनों तुम्हारी नगरी उज्जयनी बसती है यानी मध्यप्रदेश के मेडिकल विद्यार्थियों की व्यथा I सालों से मध्यप्रदेश के विद्यार्थियों की शिकायत है कि वे अपने ही साथ प्रवेश लिए दूसरे प्रान्तों के विद्यार्थियों से कई माह पिछड़ जाते रहे हैं I उन बेचारों की परीक्षाएं समय पर नहीं होती हैं, परिणाम भी दो से चार महीनों तक विलम्बित हो जाता है I वरिष्ठ शिक्षक पढ़ाते नहीं हैं I लाशों की भारी कमी के चलते शरीर की आंतरिक सूक्ष्म रचना किताबों में ही पढ़ना पड़ती है I एम.सी.आई. के आला अधिकारी शिक्षकों की संख्या और उनके शैक्षणिक दस्तावेज तो बड़ी तन्मयता तथा सूक्ष्मता से देखते हैं, परन्तु वे पढ़ाते हैं या नहीं, यह देखने का कोई नियम – प्रावधान है ही नहीं I विद्यार्थियों की समस्या सुनने – जानने का कोई नियम ही नहीं है I इसलिए विद्यार्थी तरह तरह की समस्याओं को विवशता के साथ झेलते रहते हैं और निराशा, हताशा और अवसाद के गहरे समुद्र में डूबते उतराते रहते हैं I
इतना कहकर बेताल ने लम्बी सांस ली और फिर बोला I
अरे हां विक्रम, मैं तुझे बताना ही भूल गया कि इस बार मैंने अपने प्रश्नों के पैटर्न में बदलाव किया है और मुझे उम्मीद है कि तुझे वह पैटर्न मेडिकल स्टूडेंट्स की तरह पसन्द भी आएगा I
विक्रम – कैसा बदलाव ?
बेताल – मैं अब कहानी के अन्त की बजाय बीच बीच में प्रश्न करूंगा I तुझे कहानी के बीच में ही मेरे उन सवालों का सटीक जवाब देना होगा I यदि एक भी सवाल का जवाब मेरे मनमाफिक नहीं हुआ तो तेरे सिर के टुकड़े टुकड़े हो जाएंगे I
विक्रम– जैसी तुम्हारी मर्जी, मैं कर भी क्या सकता हूं I
बेताल, हां तो बताओ, अब तक जितनी कथा मैंने सुनाई उसमें तुम्हें क्या क्या समस्याएं दिखी और उनका सटीक समाधान क्या है ? जानते हो न कि मनचीता जवाब नहीं, तो तुम्हारे सिर का अस्तित्व भी नहीं I
विक्रम बोला, बेताल ! तुम इस बार कुछ ज्यादा ही चालाकी कर रहे हो I प्रश्न भी मैं खोजूं, यह तो ज्यादती है I क्योंकि इतनी बड़ी कथा से एक दो नहीं पचास नए सवाल खड़े करके तुम मुझे कटघरे में खड़ा कर सकते हो I
बेताल बेतहाशा हंसने लगा I हा, हा, हा I
विक्रम – चलो बेताल कोई बात नहीं, जैसी तुम्हारी मर्जी I
पहला तो यह कि विद्यार्थियों के पूरे पाठ्यक्रम की समयसारिणी प्रवेश के साथ ही देशभर के सभी मेडिकल कॉलेजों को दे दी जाए, जिसका पालन नहीं होने पर मान्यता पांच साल के लिए रद्द करने का स्पष्ट प्रावधान हो I इससे समयावधि की एकरूपता स्वत: ही घटित होगी I
दूसरा, किसी भी शैक्षणिक संस्थान में यदि विद्यार्थियों को नजरअंदाज किया जाता है तो वह संस्थान अपने उद्देश्यों में सर्वथा विफल रहेगा I अतएव विद्यार्थियों की समस्या हर साल, निरीक्षकों द्वारा एकान्त में जानना चाहिए यानी शिक्षकों की अनुपस्थिति में I फिर उनका सटीक और वास्तविक निराकरण तुरन्त किया जाना चाहिए I
तीसरा, शिक्षकों की पर्याप्त संख्या से ज्यादा जरूरी है, गुणवत्ता I किसी भी संस्थान में निर्धारित संख्या में शिक्षक तो हैं परन्तु यदि वे पढ़ाते ही नहीं हैं अथवा पढ़ाने या प्रायोगिक कक्षाओं में सिखाने को हेय मानते हों तो शिक्षा का सर्वनाश होना तय है I इसलिए उनके द्वारा पढ़ाया जाना सौ फीसदी सुनिश्चित किया जाए I जो नहीं पढ़ाएं उनकी तुरन्त छुट्टी हो I
चौथा, ज्ञान के विस्फोट को देखते हुए मेडिकल में प्रवेश को 12वीं से घटाकर 10वीं किया जाए I
पांचवां, शिक्षकों या विद्यार्थियों के शोध का भारतीय आवश्यकताओं के अनुरूप होना अनिवार्य किया जाए I राष्ट्रीय बेशर्मी यानी कुपोषण से निपटना देश की पहली प्राथमिकता हो I सारे शोध जनोपयोगी हो I भारतीय समाज में सदियों से बिना दस्तावेजों के हस्तान्तरित हो रहे दादी-नानी के नुस्खों पर गहन शोध हों और उनकी वैज्ञानिक रूप से प्राणप्रतिष्ठा कर उनका पेटेन्ट हम करवाएं I हरेक मेडिकल कॉलेज के आसपास के क्षेत्रों में बहुतायत से होने वाली वनस्पतियों में पौष्टिक तत्वों की भरपूर मात्रा आसानी से मिल सकती है, इस पर केन्द्रित खूब शोध किए जाएं, ताकि कुपोषण बिना खर्चे के समाप्त हो जाए I राष्ट्रीय स्तर भारतीय जीवनचर्या पर गहन शोध पर हों और उनका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर केन्द्र सरकार द्वारा प्रचार किया जाए I
छठा, लाशों की संख्या का अनुपात 1 :10 का सुनिश्चित किया जाए I बेकार के प्रयोगों को निर्ममतापूर्वक कचरापेटी के हवाले किया जाए I क्या खूब कि इन प्रयोगों में हर साल विद्यार्थियों के करोड़ों घंटे बर्बाद हो रहे हैं और एम.सी.आई. मौन साधना में तल्लीन है I नए प्रयोग लागू किए जाएं, जो सीधे सीधे उनमें रोगमुक्ति की अलख जगा सकें I जैसे सिम्पल वूंड रिपेयर, क्रिटिकल केयर, उपलब्ध संसाधनों से भोजन को संतुलित आहार में बदलना, उपलब्ध संसाधनों से उपलब्ध जल को पेयजल में रूपान्तरित करना, प्राकृतिक आपदा प्रबन्धन, घावों की देखभाल, प्राथमिक चिकित्सा, 15-20 सामान्य रोगों के निरापद प्रिस्क्रिप्शन लिखना आदि I
सातवां, साल में कम से कम पन्द्रह से बीस दिन के लिए मेडिकल विद्यार्थियों को गांवों में रहना अनिवार्य किया जाए I उनके साथ उनके शिक्षक और जूनियर डॉक्टर्स भी रहें I इससे वे ग्रामीण जीवन और उनकी समस्त समस्याओं का निकट से प्रत्यक्ष अध्ययन कर सकेंगे और तदनुसार उनका निराकरण करने की दिशा में सही चिन्तन कर सकेंगे I वे अपने ग्राम प्रवास के दौरान प्रतिदिन पन्द्रह से बीस नागरिकों का सम्पूर्ण रूप से सामान्य स्वास्थ्य परीक्षण करेंगे और उन्हें एक निर्धारित स्वास्थ्य पत्रक में दर्ज करेंगे I इससे उनमें संवाद कौशल्य, आत्मविश्वास और आत्मीयता का भी विकास होगा और गांवों के नागरिकों को स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी सीधे सीधे मिलेगी I ऐसा किया जाएगा तो देशभर के समस्त 131 करोड़ नागरिकों के सचित्र स्वास्थ्य पत्रक भी केवल दो तीन साल में ही बन सकेंगे I
अरे विक्रम, बस भी कर I तू तो बड़ा चतुर है रे I तूने तो कमाल कर दिया रे I मेरे द्वारा सोचे गए सारे सवालों के सही सही जवाब मुझे मिल चुके हैं I अगली बार इस कहानी का दूसरा खण्ड तुझे सुनाऊंगा I इतना कहकर बेताल अपने मनचाहे पेड़ के मोटे तने में घुस कर अदृश्य हो गया I
— डॉ. मनोहर भण्डारी