कविता

मज़ार की दीवार

मैं क्या किसी मज़ार की दीवार हूँ

जहाँ उम्मीद के धागे बाँधे जाते हैं

हर किसी की उम्मीद को पूरा करूँ

क्यों सब ऐसी आस लगाते हैं

 

हर ख़्वाहिश पूरी हो, ज़रूरी तो नहीं

दीवार ही तो हूँ, कोई परी तो नहीं

कुछ आधी अधूरी ख़्वाहिशों का बोझ है

जो सदियों से लिए खड़ी हूँ

जहाँ खड़ी थी वहीं खड़ी हूँ

न पीछे गई न आगे बढ़ी हूँ

 

जो कुछ उम्मीदों पर खरी उतरी

कुछ उम्मीदें जश्न वाली

तो धागे खोल लिए जाते हैं

और छोड़ जाते हैं दीवार खाली

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*नीतू सिंह

नाम नीतू सिंह ‘रेणुका’ जन्मतिथि 30 जून 1984 साहित्यिक उपलब्धि विश्व हिन्दी सचिवालय, मारिशस द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी कविता प्रतियोगिता 2011 में प्रथम पुरस्कार। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी, कविता इत्यादि का प्रकाशन। प्रकाशित रचनाएं ‘मेरा गगन’ नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2013) ‘समुद्र की रेत’ नामक कहानी संग्रह(प्रकाशन वर्ष - 2016), 'मन का मनका फेर' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2017) तथा 'क्योंकि मैं औरत हूँ?' नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) तथा 'सात दिन की माँ तथा अन्य कहानियाँ' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) प्रकाशित। रूचि लिखना और पढ़ना ई-मेल [email protected]

4 thoughts on “मज़ार की दीवार

    • नीतू सिंह

      शुक्रिया

  • जहाँ खड़ी थी वहीं खड़ी हूँ

    न पीछे गई न आगे बढ़ी हूँ अत्ती उत्तम पन्क्तीआन .

    • नीतू सिंह

      शुक्रिया

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