ग़ज़ल
आंखों से दिलदम का अंदाज जुदा होता है
कैसे कह दें हम कि इंसान खुदा होता है
माना कि अपनी मस्ती में रहता है आदमी
हालातोँ की जंजीरों से हर पल लदा होता है
कहने को तो लड़ लेता अपनी तकदीर से
पर हाथों की लकीरों मेँ लटका सदा होता है
सुख दुख तो पायदान हैं सदा ही जीवन के
कोई जिंदगी की उलझनों से कहां विदा होता है
कतरा कतरा बीतता जाता हे हर लम्हा
कौन “एकता” किस पर हरदम फिदा होता है
कहने को तो लड़ लेता अपनी तकदीर से
पर हाथों की लकीरों मेँ लटका सदा होता है वाह वाह .