कविता

मैं छिपकली हूँ

मैं छिपकली हूँ
गृहस्थी की दीवार से चिपकी
मैं छिपकली हूँ

कभी रसोईघर में बर्तनों के बीच मेरी आहट सुनाई तुम्हें देगी
कभी हिम्मत कर घर की कालीन पर मेरी परछाई पड़ेगी
घर और परिवार से चिपकी
गृहस्थी की दीवार से चिपकी
मैं छिपकली हूँ

घर भर के आइनों पर चढ़ी तो फिसलती नज़र आऊँगी
आइनों में खुद को ढूँढकर ज़रा बदलती नज़र आऊँगी
कभी हल्के कभी गाढ़े श्रृंगार से चिपकी
गृहस्थी की दीवार से चिपकी
मैं छिपकली हूँ

टी. वी के पीछे से कभी-कबार आवाज़ आएगी मेरी
सीरियल के किरदारों से आवाज़ दब जाएगी मेरी
किस्सों के किसी किरदार से चिपकी
गृहस्थी की दीवार से चिपकी
मैं छिपकली हूँ

ड्योढी के बाहर नहीं जाती, कहीं धूप से न जल जाऊँ
बाज़ार में भी नहीं जाती कहीं पैरों से न कुचल जाऊँ
कल्पना के संसार से चिपकी
गृहस्थी की दीवार से चिपकी
मैं छिपकली हूँ

ज़रा छेड़ो तो पूँछ छोड़ कोनो में छुपूँगी
मिली जो घर की दीवार रोके नहीं रूकूँगी
छिपकली के हर आचार से चिपकी
गृहस्थी की दीवार से चिपकी
मैं छिपकली हूँ
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*नीतू सिंह

नाम नीतू सिंह ‘रेणुका’ जन्मतिथि 30 जून 1984 साहित्यिक उपलब्धि विश्व हिन्दी सचिवालय, मारिशस द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी कविता प्रतियोगिता 2011 में प्रथम पुरस्कार। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी, कविता इत्यादि का प्रकाशन। प्रकाशित रचनाएं ‘मेरा गगन’ नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2013) ‘समुद्र की रेत’ नामक कहानी संग्रह(प्रकाशन वर्ष - 2016), 'मन का मनका फेर' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2017) तथा 'क्योंकि मैं औरत हूँ?' नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) तथा 'सात दिन की माँ तथा अन्य कहानियाँ' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) प्रकाशित। रूचि लिखना और पढ़ना ई-मेल n30061984@gmail.com