गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

आंखों से दिलदम का अंदाज जुदा होता है
कैसे कह दें हम कि इंसान खुदा होता है

माना कि अपनी मस्ती में रहता है आदमी
हालातोँ की जंजीरों से हर पल लदा होता है

कहने को तो लड़ लेता अपनी तकदीर से
पर हाथों की लकीरों मेँ लटका सदा होता है

सुख दुख तो पायदान हैं सदा ही जीवन के
कोई जिंदगी की उलझनों से कहां विदा होता है

कतरा कतरा बीतता जाता हे हर लम्हा
कौन “एकता” किस पर हरदम फिदा होता है

*एकता सारदा

नाम - एकता सारदा पता - सूरत (गुजरात) सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने ektasarda3333@gmail.com

One thought on “ग़ज़ल

  • कहने को तो लड़ लेता अपनी तकदीर से
    पर हाथों की लकीरों मेँ लटका सदा होता है वाह वाह .

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