कविता

ऐ देश मेरे!

ऐ देश मेरे! तेरा रंग निराला है।

मगर क्या तू कभी आगे बढ़ने वाला है?

क्योंकि तेरे हर शुभ काम से पहले

तुझे यहाँ की औरतों अपनी हाय लगाती हैं

वहीं औरतें जो रह रहकर

कभी सीता, कभी द्रौपदी कभी निर्भया बना दी जाती हैं

 

तेरे आगे बढ़ने से पहले ही

यहां के आदमी सामने से देते हैं छींक

तेरे हर अवार्ड, हर उपलब्धि पर

नज़र आती है हिन्दुस्तानी पान की पीक

क्यूंकि तेरे हर कदम को यहां

यह कह कर रोक-टोक दिया जाता है।

कि इस कदम से बता भला

हमारी सभ्यता-संस्कृति का क्या नाता है।

 

ऐ देश मेरे! माना कि तेरा रंग निराला है।

मगर क्या तू कभी आगे बढ़ने वाला है?

*****

*नीतू सिंह

नाम नीतू सिंह ‘रेणुका’ जन्मतिथि 30 जून 1984 साहित्यिक उपलब्धि विश्व हिन्दी सचिवालय, मारिशस द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी कविता प्रतियोगिता 2011 में प्रथम पुरस्कार। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी, कविता इत्यादि का प्रकाशन। प्रकाशित रचनाएं ‘मेरा गगन’ नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2013) ‘समुद्र की रेत’ नामक कहानी संग्रह(प्रकाशन वर्ष - 2016), 'मन का मनका फेर' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2017) तथा 'क्योंकि मैं औरत हूँ?' नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) तथा 'सात दिन की माँ तथा अन्य कहानियाँ' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) प्रकाशित। रूचि लिखना और पढ़ना ई-मेल [email protected]

2 thoughts on “ऐ देश मेरे!

  • भारत की सत्री का भारत में स्थान बता कर विअंग कस दिया है .

    • नीतू सिंह

      जी….ऐसा ही होता है….जिस परिवार में नारी का सम्मान नहीं होता वह चाह कर भी आगे बढ़ नहीं सकता……वही हाल देश का होता है

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