कविता

अवर्णनीय

कवि की कविता हो तुम
या गायक की गीत
हर पल रहती हो अंतरंग मै लीन l
नर्तक की नॄत्य हो तुम
या चित्रकार की चित्र
हर पल रहती हों औरों से भिन्न l
विद्वानो की सोच हों तुम
या कुदरत की लय
तुम हों एक ‘ वर्ण ‘ अवर्णनीय l
कहानीकार की कहानी हों
या दूसरी दुनिया की अप्सरा
हर पल तेरी अदा हैं औरों से जुदा  l
गणितज्ञ की गणित हों
य हों बदमाशों की बदमाशी
क्यों हर पल रहती हों खुद से अनजानी I
                 —- मुकेश नास्तिक

मुकेश नास्तिक

नाम - मुकेश नास्तिक कटिहार जिला सहित्य संमेलन क सदस्य संस्कार भारती द्वारा समानित पता --नया टोला,कटिहार

One thought on “अवर्णनीय

  • वाह वाह .

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