शहीद की माँ
आता देख काफिला
सुन गाड़ियाँ की गडगडाहट।
विस्मीत सी सीना थामे
वो एक माँ…………
जिसे पता तक नहीं
कि हो गया हैं शहीद
लाल उसका सीमा पे
सुबकती सी सिसकती सी
जब रख कलेजे पर पत्थर
देखा उसने कफन हटा
हाँ !!! सचमुच यह तो
उसी का लाल था।।
और एक गहरा धक्का
लगा अचानक ज़ोर से
जब देखा उसने लाल के
गोलियों से छलनी बदन को
मगर …………
उस माँ कि आँखों में
नहीं था यह रूदन
शायद उस शहादत का
थी पीड़ा तो बस यहीं
कि काश ………………
होता एक और लाल
जिसे इस शहादत के बाद
भेज देती सरहद पे
कर देती उसे भी
उस माँ के लिए कुर्बान
— अनमोल
जिन जवानों की वजाह से देश चैन की नींद में सो रहा होता है ,वहीँ उस की माँ जाग रही होती है .