कुण्डलिया छंद
1)
पीता विष का घूँट हूँ, सुनके कड़वी बात।
बात-बात में कर गया, बेटा दिल आघात।।
बेटा दिल आघात, सुने न आज की पीढ़ी।
उन्हें लगे माँ-बाप, चढे है धन की सीढ़ी।
कहे सुनो तो गूँज, व्यर्थ मैं जीवन जीता
होती ऊबन रोज, घूँट विष का ही पीता।
2)
द्वारे बैठी प्रेयसी, राह निहारे रोज।
मन में चुभते बैन हैं, नैन रहे थे खोज।।
नैन रहे थे खोज, दूर तक अटके भटके,
टूट गई थी नींद, खड़े थे साजन सट के।
सुन”गुंजन”की गूँज, नैन से नैन निहारे
बाँह गले में डाल, खोल दे दिल के द्वारे।।
—-गुंजन “गूँज”