कुण्डली/छंद

कुण्डलिया छंद

 

1)

पीता विष का घूँट हूँ, सुनके कड़वी बात।
बात-बात में कर गया, बेटा दिल आघात।।
बेटा दिल आघात, सुने न आज की पीढ़ी।
उन्हें लगे माँ-बाप, चढे है धन की सीढ़ी।
कहे सुनो तो गूँज, व्यर्थ मैं जीवन जीता
होती ऊबन रोज, घूँट विष का ही पीता।

2)

द्वारे बैठी प्रेयसी, राह निहारे रोज।
मन में चुभते बैन हैं, नैन रहे थे खोज।।
नैन रहे थे खोज, दूर तक अटके भटके,
टूट गई थी नींद, खड़े थे साजन सट के।
सुन”गुंजन”की गूँज, नैन से नैन निहारे
बाँह गले में डाल, खोल दे दिल के द्वारे।।

—-गुंजन “गूँज”

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*