छोटा सा दीपक
छोटा सा दीपक हूँ, कहते हैं घर का चिराग़
मुझसे ही जलती है, घर के उम्मीदों की आग
नन्हीं सी है लौ मेरी
लेकिन हैं आशाऐं ढेर
रहें जो आशाऐं अधूरी
या लगती थोड़ी देर
मुझे कोसने लगते हैं
मुझे लेते हैं घेर
बुझा मुझे देते हैं, जब जाता है सूरज जाग
छोटा सा दीपक हूँ, कहते हैं घर का चिराग़
मुझसे ही जलती है, घर के उम्मीदों की आग
मैं मिट्टी का दीपक हूँ
बना आग में पककर
जलकर बना, जलता रहा
बुझ गया मैं थककर
रेशे मेरे जल चुके
बाती बुझी फफक-फफकर
अब न जलूँगा, चाहें गाओ दीपक राग
छोटा सा दीपक हूँ, कहते हैं घर का चिराग़
मुझसे ही जलती है, घर के उम्मीदों की आग
*****
मैं मिट्टी का दीपक हूँ
बना आग में पककर
जलकर बना, जलता रहा
बुझ गया मैं थककर बडीया पन्क्तीआन .
धन्यवाद सर जी! आपके संस्मरण भी बहुत बढियां होते हैं। अब तक 40 ही पढ पाई हूँ। मगर आप ने तो सेंचुरी मार ली। इससे पता चलता है कि आपके पास यादों और अनुभवों की कितनी बड़ी संपत्ति है जो आप बांटते जा रहे हैं मगर कम नहीं हो रही।