गीत/नवगीत

व्यंग्य गीत- ये कैसा है सम्मान बंधु

ये कैसा है सम्मान बंधु ये कैसा है सम्मान बंधु.
हमको ही सारे खर्चों का करना होगा भुगतान बंधु.
आने-जाने, रहने-खाने
का खर्च वहन करना होगा.
पंजीकृत नाम कराना है
इस हेतु शुल्क भरना होगा.
कुछ खर्चे होंगे आकस्मिक उनका भी है अनुमान बंधु.
अपने ही खर्चे पर अपना हम करवायें गुणगान बंधु.
मिलना है एक प्रशस्ति-पत्र
गेंदे के फूलों की माला.
उसके सँग होगा अंगवस्त्र
छ: इंची चौड़ाई वाला.
इतने की खातिर कितनों का लेना होगा अहसान बंधु.
जो तेज़ न दीपक सा उसको तुम कह दोगे दिनमान बंधु.
सच पूछो तो सम्मान नहीं
ये अच्छा-खासा है धन्धा.
कुछ सरकारी संस्थानों से
कुछ धनवानों से लो चन्दा.
थोड़ा सा करके खर्च, शेष पी जाओ सब अनुदान बंधु.
ऐसे आयोजन करा-करा तुम ही होगे धनवान बंधु.
इन तथाकथित सम्मानों से
कितनी इज़्ज़त बढ़ जायेगी.
इक अच्छी कविता ही हमको
सच्ची शोहरत दिलवायेगी.
सोचो क्या ऐसे थे तुलसी-सूरा-कबिरा-रसखान बंधु.
ऐसे होते तो हिन्दी का कितना होता उत्थान बंधु.
डाॅ. कमलेश द्विवेदी
मो.09415474674

4 thoughts on “व्यंग्य गीत- ये कैसा है सम्मान बंधु

  • नीतू सिंह

    सही है

  • विजय कुमार सिंघल

    उत्कृष्ट व्यंग्य ! यह बहुतों को बुरा लगेगा, लेकिन सच्चाई यही है।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    हा हा ,बडीया .

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