खुद की तलाश में…
खुद की तलाश में गुजर रही है ज़िन्दगी।
तय रास्ते अनजान कर रही है ज़िन्दगी॥
वो कह रहे है दौर नया आ गया मगर।
जीते जी अब भी रोज मर रही है ज़िन्दगी॥
दीवारों पर लहुं के गहरे दाग देखकर।
हमसे सवाल कडवे कर रही है ज़िन्दगी॥
शर्मो हया का मिट रहा वज़ूद देखकर।
अंज़ाम से अपने सिहर रही है जिन्दगी॥
जब से ज़हा में सत्य का वज़ूद मिट गया।
अफ़सोस ज़िन्दगी पे कर रही है ज़िन्दगी॥
गैरों के हर छद़म को भेदना आसान है।
अपनों की फ़ितरतों से डर रही है ज़िन्दगी॥
जितना समेटता हूं टूटता है हौसला।
जीने की ज़द्दोज़हद कर रही है ज़िन्दगी॥
सतीश बंसल
बहुत खूब .
शुक्रिया गुरमेल जी।
उत्तम ग़ज़ल !
आभार विजय जी..