गीतिका/ग़ज़ल

खुद की तलाश में…

खुद की तलाश में गुजर रही है ज़िन्दगी।
तय रास्ते अनजान कर रही है ज़िन्दगी॥

वो कह रहे है दौर नया आ गया मगर।
जीते जी अब भी रोज मर रही है ज़िन्दगी॥

दीवारों पर लहुं के गहरे दाग देखकर।
हमसे सवाल कडवे कर रही है ज़िन्दगी॥

शर्मो हया का मिट रहा वज़ूद देखकर।
अंज़ाम से अपने सिहर रही है जिन्दगी॥

जब से ज़हा में सत्य का वज़ूद मिट गया।
अफ़सोस ज़िन्दगी पे कर रही है ज़िन्दगी॥

गैरों के हर छद़म को भेदना आसान है।
अपनों की फ़ितरतों से डर रही है ज़िन्दगी॥

जितना समेटता हूं टूटता है हौसला।
जीने की ज़द्दोज़हद कर रही है ज़िन्दगी॥

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.

4 thoughts on “खुद की तलाश में…

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब .

    • सतीश बंसल

      शुक्रिया गुरमेल जी।

  • विजय कुमार सिंघल

    उत्तम ग़ज़ल !

    • सतीश बंसल

      आभार विजय जी..

Comments are closed.