ज़िंदगी की खूबसूरत पटरी
सुंदर चेहरे पर मुस्कान, यही है शुगुफ़्ता यानी खूबसूरती और ताज़गी की पहचान. शुगुफ़्ता ने जब दुनिया में आने के बाद पहली बार आंखें खोलीं थीं तो, उसके दादाजी जो, उर्दू के भी अच्छे जानकार थे, दूध-सी उजली गुड़िया के सुंदर चेहरे, उसकी थोड़ी-थोड़ी भूरी और थोड़ी-थोड़ी हरी आंखों को देखकर उनके मुख से सहसा ही निकल गया मेरी नन्ही गुड़िया शुगुफ़्ता. तब से ही उसका नाम शुगुफ़्ता हो गया. अपने नाम की तरह ही खूबसूरती और ताज़गी का लबालब पैमाना थी शुगुफ़्ता. नाम की तरह ही उसका दिल भी उतनी ही खूबसूरती और ताज़गी से ओतप्रोत था.
आज के स्वार्थ भरे युग में आपराधिक तत्वों का इतना दबदबा है कि भीड़ भरे बाजार में शाम के वक्त एक व्यक्ति को लूटपाट का विरोध करने पर उसकी ही दुकान के अंदर तीन गोलियां मारी गईं और उसके बाद बदमाश आराम से फरार हो गए. पीड़ित के परिजनों और पुलिस, दोनों का यही कहना है कि गोली चलने के बावजूद भी बदमाशों को रोकने और पकड़ने के लिए कोई आगे नहीं आया. लेकिन, खूबसूरत मन की मल्लिका शुगुफ़्ता पर आज के स्वार्थ भरे युग ने अपने स्वार्थ की कोई छाप नहीं छोड़ी थी. उसके निःस्वार्थ-निर्मल स्वभाव का ही यह प्रभाव था कि उसके सभी जानने-पहचानने वाले लोग उसे बहुत प्यार करते थे. उसकी बहुत-सी अच्छी बातों में से एक अच्छी बात यह थी कि वह जो भी नई-पुरानी अच्छी बात पढ़ती-सुनती थी, वह सब मिलने वालों को बताकर आंतरिक खुशी पाने के साथ-साथ उन्हें लाभांवित भी करती थी . कभी भी, कहीं भी, किसीको भी सहायता की ज़रूरत हो, कहने की प्रतीक्षा किए बिना सहायता करने को तैयार रहती थी.
एक बार एक पोलियोग्रस्त युवती लोकल ट्रेन में चढ़ने के लिए लाइन में उसके पीछे खड़ी थी. शुगुफ़्ता ने उसे अपने आगे आकर खड़े होने को कहा. युवती ने नम्रतापूर्वक “मैं यहीं ठीक हूं, धन्यवाद” कहते हुए आगे आने का प्रयत्न नहीं किया. विकलांग लोगों के लिए, प्रभु का कहें या कि इस सृष्टि का वरदान होता है, कि वे अनुशासन के पक्के होने के साथ सामान्य लोगों से अधिक दृढ़ और स्वाभिमानी होते हैं. शुगुफ़्ता ने फिर भी मन में सावधानी रखने की ठानी. हुआ भी यही कि जैसे ही शुगुफ़्ता के गाड़ी में चढ़ते ही वह युवती चढ़ने लगी, उसका एक पैर प्लेटफार्म व गाड़ी के बीच के गैप में अटक गया. उसके पीछे कोई नहीं था. शुगुफ़्ता पहले से उस युवती के लिए सावधान थी ही सो, उसने तुरंत उस युवती का हाथ पकड़कर उसको गिरने से बचा लिया और ऊपर चढ़ाकर उसे बिठाया, संयत किया और अपनी पानी की बोतल से पानी पिलाया. युवती ने उसे धन्यवाद देकर उसका नाम-पता बताने का आग्रह किया. न चाहते हुए भी उसके बहुत आग्रह करने पर उसे अपना नाम-पता बताना पड़ा. शाम को उस युवती का भाई अपनी उसी बहिन के साथ शुगुफ़्ता का धन्यवाद करने आया. धन्यवाद करने के बाद वह बोला, “अपनी इकलौती बहिन की ज़बानी सारा किस्सा सुनकर लगा, कि आज भी आप जैसे भलमनसाहत और साहस से पूर्ण लोगों की इंसानियत की बदौलत स्वार्थ से लबालब यह धरती अपनी धुरी पर टिकी हुई है वरना, आज के स्वार्थ भरे युग में कौन किसकी परवाह करता है! सचमुच आपके नाम के अनुरूप ही आपका मन भी खूबसूरत है. आपको जानकर आश्चर्य होगा कि हम दोनों ही एक-दूसरे का सहारा है इसी कारण, मेरे छोटी-मोटी नौकरी पर जाने के बाद कभी-कभी मजबूरी में इसे अकेला जाना पड़ता है अन्यथा मैं कहीं भी इसे अकेला नहीं जाने देता. आपको हार्दिक धन्यवाद देने के लिए मैं शब्द भी नहीं जुटा पा रहा हूं.”
यह कहकर वे तो चले गए लेकिन, शुगुफ़्ता के मन में मंथन चलता रहा. आखिर उसने एक नौकरी करने वाले गरीब युवक को उस युवती से विवाह करने के लिए राज़ी कर लिया और दहेज में अपनी तरफ से एक छोटा-सा फर्निश्ड फ्लैट देकर दोनों को खुशहाल ज़िंदगी से रूबरू कराया. उसके भाई के लिए भी एक अच्छी-सी नौकरी औए जीवनसाथी का जुगाड़ करके उसके विवाह में यथाशक्ति उपहार देकर उनकी भी ज़िंदगी पटरी पर ला दी. ट्रेन की पटरी पर दुर्घटनावश सहसा हुई मुलाकात, भाई-बहिन की ज़िंदगी की पटरी को शुगुफ़्ता के मन की खूबसूरती से खूबसूरत बनने में सहायक हुई.
बहुत ही मनमोहक कहानी
प्रिय सखी पूनम जी, सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
वाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्हआदरणीया बहन जी लाजवाब कथानक के लिए तहेदिल आभार एवम् नमन्
प्रिय राजकिशोर भाई जी, हम भी प्रतिक्रिया के लिए तहेदिल से आपके शुक्रगुज़ार हैं.
प्रिय सखी मनजीत जी, आपकी प्रतिक्रियाएं हमें बहुत अच्छी व मार्गदर्शक लगती हैं.
आदरणीय प्रिय सखी जी खूबसूरत मन की मलिका शुगुफ्ता जी के बारे में पड़ कर बहुत अच्छा लगा वह सिर्फ अच्छी सूरत की ही नहीं अच्छी सीरत की भी मलिका है| अपनी अच्छी सोच और दुसरो के लिए कुछ करने का ज़ज़्बे से वो दुसरो के जीवन को भी खूबसूरत बनाती है और खुशिया बांटती है| अच्छी सूरत और सीरत के इक्कठे दर्शन कराने के लिए आप का शुक्रिया जी |
लीला बहन, कहानी बहुत अच्छी लगी .बहुत समय हुआ यह शगुफ्ता नाम मैंने एक फिल्म में देखा सुना था ,अर्थ तो मुझे पता नहीं थे लेकिन यह नाम लड़की की खूबसूरती से यचता था . आप की कहानी से एक बात तो सामने आती है कि इस संसार में अछे लोगों की कमी नहीं है और इसी पर संसार टिका हुआ है .
प्रिय गुरमैल भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है, कि इस दुनिया में अच्छे लोगों की कमी नहीं है. बिलकुल अनजान शुगुफ़्ता से बस मैं दो मिनट के लिए मिली थी, पर उसकी मासूम मुस्कुराहट बता रही थी, कि वह बात करने पर जवाब तो देगी ही. उसी चार्टर्ड बस में घंटा भर बैठे-बैठे मन में इस कहानी का सृजन हो गया था, फिर घर आकर लिख ली थी. यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको कहानी अच्छी लगी.
बहुत अच्छी कहानी, बहिन जी !
कृपया यह बतायें कि शुगुफ्ता का किस भाषा में क्या अर्थ होता है? यह शायद फ़ारसी शब्द है !
प्रिय विजय भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको कहानी अच्छी लगी. शुगुफ़्ता सम्भवतः अरबी-फारसी का ही शब्द होगा. शुगुफ़्ता दो-ढाई साल पहले मुझे बहरीन में एक बस स्टॉप पर मिली थी. बस मैंने उसका नाम और उसका अर्थ पूछा था, उसी दिन से यह कहानी लिखी हुई है, आज इसके छपने की बारी आ गई.
बहिन जी, आपने इस शब्द का अर्थ तो बताया ही नहीं!
प्रिय विजय भाई जी, शुग़ुफ़्ता शब्द का अर्थ कहानी की पहली पंक्ति में है- ”खूबसूरती और ताज़गी”.
धन्यवाद, बहिन जी !