कविता : मित्र की मुस्कान
मित्र स्नेह का झरना है
और मित्र गुणों की खान
मित्रों से ही है समाज में
हम सब की पहचान
कर सकता हूँ इसकी खातिर
मैं जीवन कुर्बान
प्राणों से प्यारी है मुझको
मित्रों की मुस्कान
शब्द नहीं एहसास हैं वो
सच्चाई और विश्वास हैं वो
धूप में हैं छाँव जैसे
दुख में सुख का आभास हैं वो
इनकी उपस्थिति से बढ़ जाए
हर अवसर की शान
प्राणों से प्यारी है मुझको
मित्रों की मुस्कान
कभी पिता-सा डाँटते हैं
कभी माँ-सी चिंता करते हैं
कभी सहारा बनें भाई-सा
कभी बहन सा लड़ते हैं
रखना बहुत सहेज के तुम
ईश्वर का ये वरदान
प्राणों से प्यारी है
मुझको मित्रों की मुस्कान
मित्रता कपाल का चंदन है
जन्मों-जन्मों का बंधन है
देवों को भी जो दुर्लभ है
उस भाव को मेरा वंदन है
कहा कृष्ण ने बाल-सखा से
सुदामा सुन धर ध्यान
प्राणों से प्यारी है मुझको
मित्रों की मुस्कान
मित्र स्नेह का झरना हैं
और मित्र गुणों की खान
मित्रों से ही है समाज में
हम सब की पहचान
— भरत मल्होत्रा
एक और अच्छी रचना।