गीतिका
आधार छन्द आनंदवर्धक
मापनी -2122 2122 212
समान्त -आना
पदान्त – आ गया
याद इक किस्सा पुराना आ गया।
सामने बीता ज़माना आ गया।
अब न कोई देख उनको पाएगा
आँसुओं को अब मनाना आ गया।
जीतने का था हुनर उसको पता
यूं उसे हमको बताना आ गया।
क्यों समझ पाया न दिल की बात यह
अब समय सँग बस भुलाना आ गया।
ज़ख्म गहरे हैं बहुत ही यह अभी
हौंसलों से खुद सजाना आ गया।।।
कामनी गुप्ता ***
प्रिय सखी कामनी जी,
ज़ख्म गहरे हैं बहुत ही यह अभी
हौंसलों से खुद सजाना आ गया.
बहुत बढ़िया.
धन्यवाद जी
बढ़िया ग़ज़ल !
धन्यवाद सर जी