कविता : जब तक…
जब तक युवा मक्कारी आलस के पग चूमेगा
सच कहता हूँ तब तक भारत औरों के आगे झुकेगा
नहीं खौला खून जिसका व्यर्थ जवां तरूणाई है
टकराकर, पर्वत चूर नहीं तो ये बुझी हुई अंगड़ाई है
जिसकी रगोंमें सुप्त शोणित उसका कोई अस्तित्व नहीं
वो जिन्दा लाशें हैं भूमि पर उनमे कोई जीव नहीं
जागो, उठो मंजिल को भागो ये युग पुरुष का नारा है
हिन्दी हिन्दू हिन्दूस्तान पर जिसने तन मन वारा है
उनके आदर्शों पर चलकर, आआे, देशप्रेम रस पान करो
अपने भुजदण्डों पर रख जग से ऊंचा हिन्दुस्तान करो !!