तेरा-मेरा आसमाँ
तुम्हारा भी उतना ही आसमां है
जितना कि मेरे पास है
फिर तुम खुशी से झूमते हो क्यूँ
और मेरा दिल क्यूँ उदास है
मंजिल के लिए साथ चले
साथ ही हम दोनों आगे बढ़े
फिर क्यूँ मुझसे इतनी दूर
मगर मंजिल तुम्हारे पास है
हथेलियां जब उतनी ही हैं
जब उतना ही तेरा-मेरा आंचल है
भरा भी दोनों भरपूर है
मुझे ही क्यूँ खालीपन का एहसास है
तुम्हारा भी उतना ही आसमां है
जितना कि मेरे पास है
फिर तुम खुशी से झूमते हो क्यूँ
और मेरा दिल क्यूँ उदास है
तेरा-मेरा दोना पानी से भरा है
प्यास तेरे-मेरे होंठों पर ठहरा है
तू क्यूँ नहीं पीता उसे
मुझ में ही क्यूँ इतनी प्यास है।
हथेलियों को तूने भी सुजाया है
मैंने भी दमभर कर हाथ लगाया है
फिर यह क्योंकर हुआ कि
केवल तेरा ही संतोषजनक प्रयास है
तुम्हारा भी उतना ही आसमां है
जितना कि मेरे पास है
फिर तुम खुशी से झूमते हो क्यूँ
और मेरा दिल क्यूँ उदास है
मेहनत तो दोनों ने ही है
पसीने से तर-बतर भी हैं
तेरी मुस्कुराहट से क्यूँ लगे
मेरी मेहनत सायास तेरी अनायास है
साधारण सा जीवन है हमारा
जिसे जीना नहीं दुबारा
फिर क्यूँ मुझे मामूली लगे
क्यूँ लगे कि तू कुछ खास है।
तुम्हारा भी उतना ही आसमां है
जितना कि मेरे पास है
फिर तुम खुशी से झूमते हो क्यूँ
और मेरा दिल क्यूँ उदास है।
— नीतू सिंह
मन की अच्छी अभिव्यक्ति !
धन्यवाद सर
मन की अच्छी अभिव्यक्ति !
प्रिय सखी नीतू जी, पेशे खिदमत है एक शेर-
”सखी को सखी ही रहने दो, मैडम न बनाओ,
सखी बनने-बनाने जो आनंद है, वह मैडम कहने-कहाने में कहां?”
बहुत खूब कहा आपने
धन्यवाद मैडम! आप सखी बनेगी तो खुशी से झूम ही जाऊँगी
प्रिय सखी नीतू जी, उदास होने से काम नहीं चलेगा, आप भी खुशी से झूमिए. बहुत अच्छी कविता.