ताटंक छंद
ताटंक छंद—-१६ +१४=३० मात्रा के गाल अंत २२२ मगण से होता है /
ममता मय शीतल छाया से – लाल दूर जब होता है/
बालक कष्ट जहाँ पाता है – माँ माँ कर वह रोता है/
जीवन के हर मोडो पर माँ- सागर दिल दिख जाती है/
नव बसंत की कणिका भी नित – माँ ही माँ मन गाती है /
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’
सर्वाधिकार सुरक्षित
१०/०२/२०१६
बढ़िया छंद.
आदरणीय जी आपकी प्रतिक्रिया पुष्प पाकर मेरी रचना सार्थक हुई आपके आत्मीय स्नेहिल हौसला अफजाई के लिए तहेदिल आभार सादर नमन्
माँ की महमा का कोई अंत नहीं .
आदरणीय जी आपकी स्नेहिल पसंद प्रतिक्रिया पुष्प पाकर मेरी रचना सार्थक हुई आपके आत्मीय स्नेहिल हौसला अफजाई के लिए तहेदिल आभार सादर नमन्
प्रिय राजकिशोर भाई जी, ममतामयी मां की शीतल छाया का सुंदर-सरस चित्रण.
आदरणीया बहन जी आपकी प्रतिक्रिया पुष्प पाकर मेरी रचना सार्थक हुई आपके आत्मीय स्नेहिल हौसला अफजाई के लिए तहेदिल आभार सादर नमन्
सुन्दर छन्दमय छटा निराली श्रीमान जी बधाई हो!!
आदरणीय जी आपकी प्रथम प्रतिक्रिया पुष्प पाकर मेरी रचना सार्थक हुई आपके आत्मीय स्नेहिल हौसला अफजाई के लिए तहेदिल आभार सादर नमन्