संस्मरण

मेरी कहानी 103

कुलवंत की बहन दीपो से मिल कर बहुत अच्छा लगा था। बहुत दिन ऐसे ही बीत गए, फिर एक दिन हम ने कुलवंत के घर धैनोवाली जाने का प्रोग्राम बना लिया। सुबह ही घर से निकल कर तांगा लिया और फगवाड़े से बस पकड़ी और जीटी पर बस चल पढ़ी। चारों तरफ धुंद की चादर फैली हुई थी और सर्दी से हम ठिठुर गए थे। याद नहीं, शायद दिसंबर या जनवरी का महीना चल रहा था। आधे घंटे में ही हम धैनोवाली रेलवे फाटक पर आ पहुंचे। सड़क पार करके पैदल ही हम धैनोवाली को चल पड़े। मन में पुरानी यादें घूम रही थी, जब इसी फाटक पर मेरी और कुलवंत की पहली मुलाकात हुई थी। मन ही मन में मैं हंस पड़ा, कि वोह भी दिन थे जब हम दो थे और अब तीन नए मेहमान हमारे बच्चे पिंकी, रीटा और संदीप भी हमारे साथ हो गए थे, मन ख़ुशी से भर गया। रेलवे फाटक से कुलवंत का घर दूर नहीं था, रास्ते में कुलवंत के गाँव के लोग कुलवंत से बातें करने लगते थे और वोह खुश होकर उन से बातें करने लगती। कुछ ही देर में हम दरवाज़े पर खड़े थे। कुलवंत की माँ ने दरवाज़ा खोला और हम भीतर चले गए। जैसे मायके में सब लड़किआं खुश होती हैं, इसी तरह कुलवंत भी हर एक कमरे में घुस कर पुरानी यादों को ताज़ा करती और बोलती जाती, ” यहां यह चीज़ होती थी, वोह किधर गई, ग्रामोफोन कहाँ गया आदिक “. चाय बगैरा पीकर हम छत पर आ गए क्योंकि अब मीठी मीठी धूप आ गई थी। यहीं हमारी शादी की रस्में हुई थीं, मैं भी पुरानी बातों को याद करने लगा, अभी छै वर्ष ही तो हुए थे हमारी शादी को और इन छै सालों में बहुत कुछ बदल गिया था। कुलवंत का डैडी गुरबक्स सिंह भी बहुत खुश था और वोह बच्चे बूढ़े और युवा सभी से घुल मिल जाता था। बातें करते करते पता ही नहीं चला कब सूर्य देवता नीचे जाने लगा और ठंडी फिर बढ़ने लगी। हम फिर नीचे आ गए।

कुलवंत के डैडी ने बाइसिकल उठाया और जालंधर छावनी को चल पड़े और जाते जाते तड़के के लिए प्याज़ काटने को भी कह गए। धैनोवाली से छावनी दूर नहीं है, साइकल से दस मिनट ही लगते हैं। एक घंटे में ही वोह वापस आ गए और आते वक्त मीट और बियर की बोतलें ले आये। कुलवंत मीट बनाने लगी तो उन्होंने उसे रोक दिया, शायद उन को किसी पे भरोसा नहीं था कि उनसे बड़ीआ मीट भी कोई बना सकता है। मट्टी के तेल का स्टोव उन्होंने जलाया और पतीला ऊपर रख दिया। घी डाल कर वोह प्याज़ बगैरा डाल कर तड़का भूनने लगे। मन ही मन मुझे हंसी आ गई कि शादी से पहले इंगलैंड में मैं भी तो यही किया करता था। कुछ ही देर में उन्होंने मीट को पतीले में डाल दिया और हलकी आंच पर करके बियर की बोतल खोलने लगे जो उन्होंने बर्फ में रखी हुई थी। उस वक्त फ्रिज होते नहीं थे और बर्फ ही इस्तेमाल होती थी। मैं कुलवंत और बच्चे ड्राइंग रूम जिस को बैठक बोलते थे में बैठे थे और कुलवंत बच्चों को कमरे में लगी फोटो दिखा रही थी जिस में उस के बचपन की फोटो लगी हुई थी। इस कमरे के चारों तरफ फोटो लगी हुई थीं। कई फोटो बहुत पुरानी थी जिन का कुलवंत को ही पता था क्योंकि यह फोटो कुलवंत के दादा दादी और उन के भाईओं की थीं।

कुलवंत के पिता जी दो ग्लासों में बियर ले के आ गए और मेज पर रख दी, वोह बहुत खुश दिखाई दे रहे थे और बेटे संदीप से हिंदी बोलते। संदीप तो कोई जवाब ना देता लेकिन वोह बोली जाते, ” समोसा लेगा ? अरे ग़ज़रेला लेगा ?”. कुलवंत की बहन शमी अब बड़ी हो गई थी और बच्चों के साथ खेल रही थी। कुलवंत की माँ भी बहुत खुश थी लेकिन उस की मानसिक हालत इतनी अच्छी नहीं थी और वोह ज़्यादा बोलती नहीं थी। कुलवंत ने मुझे बहुत देर पहले बता दिया था कि कुलवंत की माँ को एक बेटा हुआ था जो बहुत मनतें मनाने के बाद हुआ था, उसका नाम तेजिंदर था और उस को तेजु बोलते थे, लेकिन वोह कुछ साल बाद ही भगवान को पियारा हो गिया था और इस के बाद उस का दिमागी संतुलन बिगड़ गिया था, वोह चुप चुप ही रहती थी। कुलवंत के पिताजी और मैं बियर पीने लगे और बातें भी कर रहे थे। घर में एक शादी का वातावरण बन गिया था क्योंकि पड़ोसिओं के बच्चे भी कमरे में आ गए थे और हमारे बच्चों के साथ खेल रहे थे।

कुछ देर बाद खाना आ गिया और सभी खाने लगे। खाना खाने के बाद देर रात तक बातें करते रहे। सुबह उठ कर हम कुलवंत के ननिहाल भोजोवाल जाने के लिए तैयार हो गए। भोजोवाल धैनोवाली से दूर नहीं है और याद नहीं हम कैसे गए लेकिन जब पहुंचे तो घर के लोग हमारा इंतज़ार कर रहे थे। कुलवंत ने ज़िंदगी का ज़्यादा हिस्सा भोजोवाल में ही गुज़ारा था। घर पहुँचते ही कुलवंत धैनोवाली की तरह इस घर की तलाशी भी लेने लगी, कभी इस कमरे में कभी उस कमरे में और मुझे भी दिखा रही थी कि वोह इन कमरों में मामा जी के बच्चों के साथ खेला करती थी। कुलवंत की मामी जी तो बहुत खुश थी और कुछ वर्ष हुए वोह कैनेडा में जा कर परलोक सिधार गई थी। इस दिन भी पाला बहुत पड़ रहा था और संदीप के कपडे और नापिआं कुलवंत चूल्हे के सामने रख कर सुखा रही थी। सारा दिन धुंद रही और कोयले की अँगीठी के पास ही बैठे रहे। कुलवंत के मामा जी का एक लड़का जो अफ्रीका से आया हुआ था, उस से मिल कर मैं बहुत खुश हुआ क्योंकि वोह इतनी जोक सुनाता था कि जितनी देर हम जागते रहे वोह जोक पे जोक सुनाता रहा।

सुबह उठ कर हम फिर वापस धैनोवाली आ गए और मैं कुलवंत और बच्चों को धैनोवाली छोड़कर रानी पर आ गिया ताकि कुलवंत कुछ दिन अपने माता पिता के साथ रह सके। अब फिर हम तीनो भाई मज़े करने लगे, कभी फगवाड़े पैराडाइज़ में फिल्म देखने चले जाते, कभी किसी होटल में खाने चले जाते। एक दिन अफ्रीका से भाबी की चिठ्ठी आई और बड़े भैया को बताया गिया कि अब वोह अफ्रीका चले आएं क्योंकि बच्चे भाबी को तंग कर रहे थे। अब जनवरी का महीना चल रहा था, तो बड़े भैया ने अफ्रीका वापस चले जाने की तैयारी कर ली। 13 जनवरी को लोहड़ी का त्योहार था और गाँव में बहुत रौनक थी। लड़के लड़किआं घर घर जाकर लोहड़ी मांग रहे थे। जो लोग मीट शराब के शौक़ीन थे वोह मीट शराब खरीद रहे थे लेकिन हम इस मामले में चुप चुप थे क्योंकि पिताजी की मृत्यु हो चुक्की थी। लोग किया कहेंगे, यह विचार करके हम घर में ही बैठे थे। दादा जी इस बात को समझते थे। दादा जी सोटी के सहारे धीरे धीरे चल कर हमारे कमरे में आ गए और बोले, “अजीत सिआं ! बेटा जो होना था वोह तो हो गिया, बहुत मुदत के बाद तुम तीनों भाई इकठे हुए हो, इस लिए तुम खाओ पीओ और मज़े करो “. दादा जी को काफी ऊंचा सुनाई देता था, बड़े भाई बोले- “मीट तो हम नहीं बनाएंगे लेकिन कुछ कुछ ड्रिंक ले लेते हैं और वोह भी हम मासी हरनाम कौर के कुँएं पर चल कर पीते हैं “.

मासी हरनाम कौर हमारी माँ की बहन बनी हुई थी और हमारे साथ उन लोगों के ताउलक बहुत अच्छे थे। उनका एक बेटा तो हमारे टाऊन में ही रहता है जिस से हम मिलते रहते हैं .वोह गाँव से एक मील दूर अपने खेतों में ही रहते थे। हम तीनों भाई घर से निकल कर खेतों की ओर चल पड़े और हम रास्ते को छोड़ कर खेतों में से हो कर ही जाने लगे ताकि हमें कोई देख ना ले। आधे घंटे बाद जब हम मासी के खेतों में पहुंचे तो बहुत लोग पहले से ही शराब लेने के लिए आये हुए थे। मासी का बड़ा लड़का सुरजीत खेतों में शराब बनाया करता था और लोगों को बेचता था। पुलिस भी उन के खेतों में आ कर मज़े करती रहती थी, इस लिए नाज़ायज़ शराब बनाने का उस को कोई डर नहीं होता था। हमें देखते ही सुरजीत हमारी तरफ भाग आया और गले लग कर मिला। फिर अपनी माँ हरनाम कौर को बोलने लगा, ” माँ ! बहुत देर बाद तीनों भाईओं को इकठे देखा है, तू अंडे बना “. फिर वोह कमरे के अंदर गिया और एक बोतल ले आया और बोला, ” यह स्पैशल बोतल है, आप के लिए है “. और फिर वोह ग्लासों में डालने लगा लेकिन हम नाह नाह कर रहे थे, कारण यह था कि वहां बहुत से खड़े लोगों में एक मिलिटरी मैंन भी था जिस को मास्टर जी बोलते थे, जिस का कुछ अपना ही रोअब होता था, इस के सामने हम बोल नहीं सकते थे, , पता नहीं क्यों, कुछ उस की शख्सियत ही ऐसे होती थी। हम ने ग्लासों को हाथ भी नहीं लगाया।

कुछ देर बाद वोह मिलिटरी मैंन (उस का नाम मुझे याद नहीं आ रहा और उस का बेटा हरमेल हमारे साथ पड़ा करता था और बाद में कैनेडा चले गिया था और वहीँ ही वोह भगवान् को पियारा हो गिया था ) जिस को मास्टर जी बोला करते थे, हमारी तरफ आ गिया और आते ही बोला, ” बई नौजवानो ! यह शराब इतनी बुरी नहीं होती बल्कि थोह्ड़ी रोज़ पीने से हार्ट मज़बूत रहता है, मैं भी नहीं पीता था, फिर एक दफा हमारी ड्यूटी कश्मीर में लगी। वहां मिलिटरी वालों को थ्री एक्स रम बहुत सस्ते दामों पर मिलती थी, सभी जवान पीते थे लेकिन मैं नहीं पीता था, एक दफा मेरे पेट में मलप (छोटे छोटे सांप ) पड़ गए। डाक्टर ने दवाई दे कर पेट के सभी मलप निकाल दिए और मुझे नसीहत दी कि थोह्ड़ी रम पिया करो, इस के बाद मैं रम पीने लगा और फिर कभी मेरे पेट में कीड़े नहीं पड़े, लो मैं भी ले लेता हूँ और तुम भी पीओ ” . फिर उस ने एक ग्लास में शराब डाल ली और धीरे धीरे चुस्कीआं लेने लगा। उसको पीते देख हमारी झिजक दूर हो गई और हम भी धीरे धीरे चारपाई पर बैठ कर पीने लगे।

फिर सुरजीत गाहकों को बोतलें भर भर के देने लगा। वोह मास्टर भी उठ कर उधर ही चले गिया और उस ने एक पीपी शराब की खरीद कर अपने साइकल के पीछे बाँधी और चलता बना। बड़े भाई हंसने लगे कि हम तो खामखाह मास्टर से झिजकते रहे, दरअसल वोह तो हम से झिझकता था, हमारे साथ बातें करना तो उसका सिर्फ बहाना ही था। मासी हरनाम कौर ने हमारे आगे अण्डों की भुर्जी की एक बड़ी प्लेट रख दी थी। सुरजीत भी आ गिया और हमारे पास बैठ कर बातें करने लगा। छोटे भाई निर्मल ने हमें पहले ही बता दिया था कि हम बच कर पियें क्योंकि यह घर की बनाई शराब बहुत तेज होती है। सुरजीत ज़िद कर रहा था कि हम और लें लेकिन हम ने बिलकुल और नहीं ली। सुरजीत से निर्मल ने एक बोतल ली और हम उठ कर वापस आने को तैयार हो गए। अँधेरा हो गिया था। कुछ ही दूर हम गए तो एक आदमी शराबी हो कर साइकल के ऊपर गिरा पड़ा था। उस को देख कर हम तीनों हंस पड़े। आगे गए तो एक और आदमी गन्ने के खेत के नज़दीक गिरा पड़ा था।

हम घर पहुँच गए थे और लोहड़ी का शोर शराबा हर तरफ से आ रहा था। घर आये तो दादा जी चारपाई पर उदास से बैठे थे। बड़े भाई ने शराब का एक पैग दादा जी को दे दिया और एक एक हम को बना दिया। दादा जी कोयले की अंगीठी के नज़दीक बैठे थे। दादा जी ने वोह पैग एक घूँट में ही पी लिया और बातें करने लगे। उस रात दादा जी ने बहुत बातें कीं, शायद शराब का सरूर हो गिया था। कभी वोह पिता जी की बातें करके रो पड़ते, कभी उन की पुरानी बातों पे हंस पड़ते, कभी वोह उन की बातों पर रोष जताते । उन दिनों को याद करके रोते, जब पिता जी की माँ उस वक्त परलोक सिधार गई थी जब पिता जी अभी पांच छै साल के ही थे। बहुत रात तक हम ने दादा जी से बातें कीं और इसी वक्त निर्मल ने दादा जी की कुछ बातें रिकॉर्ड भी कर ली जिस को बाद में सुन कर हम हँसते रहते थे। दादा जी के साथ हमारा तीनों भाईओं का यह मिल्न भी हमारे लिए एक यादगार ही है किओंकि इस के बाद हम तीनों भाई कभी इकठे नहीं हो सके .

कुलवंत को धैनोवाली रहते हुए एक हफ्ता हो गिया था. एक दिन उसका बूया जी का लड़का जसमेल हमारे घर आया और बोला, “बहन जी कहती थी उनको धैनोवाली आकर ले जाओ, बच्चे उदास हैं “. दुसरे दिन मैंने तांगा लिया, फगवाड़े पहुँच कर बस ली और धैनोवाली जा पहुंचा . बच्चे मुझे देखते ही खुश हो गए . चाये पानी के बाद कुलवंत और बच्चे तैयार होने लगे . तैयार हो कर हम घर से निकल पड़े .कुलवंत के डैडी हमारे साथ चल पड़े . जीटी रोड पर पहुँच कर फगवाड़े की बस का इंतज़ार करने लगे . जीटी रोड पर बस सर्विस बहुत है .जल्दी ही बस आ गई और हम उस में चढ़ गए . बच्चों ने नाना जी को बाई बाई कर दिया और हमारी बस फगवाड़े की ओर चल पड़ी .

चलता . ……………………..

7 thoughts on “मेरी कहानी 103

  • विजय कुमार सिंघल

    भाई साहब, हमेशा की तरह यह क़िस्त भी बहुत रोचक लगी ! आपने बेबाकी से अपनी कहानी को बयान किया है.

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      विजय भाई , आप मेरी कहानी पड़ रहे हो और मुझे बहुत हौसला अफजाई मिलती है .बहुत बहुत धन्यवाद .

  • Man Mohan Kumar Arya

    नमस्ते आदरणीय श्री गुरमेल सिंह जी। पूरी क़िस्त पढ़ी। आपके शब्दों को पाकर सभी घटनाएँ जीवंत हो उठी हैं। आप पारिवारिक संबंधों को निभाने में अच्छे अनुभवी हैं। अगली क़िस्त की प्रतीक्षा है। सादर।

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, आपकी यादों के दरीचे में शराब की यादें भी ग़ज़ब की हैं. हमेशा की तरह अद्भुत एपीसोड.

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      लीला बहन, छुपाना मेरी फितरत नहीं ,जो हुआ वोह बीत गिया ,जो बीत रहा है ,अच्छा बीत रहा है और इंशाल्ला आगे भी अच्छा ही होगा . वोह समय जो तीनों भाईओं ने इकठे बिताया वोह एक सुनैहरी याद है किओंकि इस के बाद हम तीनों इकठे नहीं सके और जो बातें उस वक्त दादा जी के साथ हुई ,उस से सुनी वोह भी एक मजेदार वाक्य ही था . एपिसोड पसंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद जी .

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      रमेश भाई , आप ने मेरी कहानी पसंद की ,मुझे बहुत ख़ुशी हुई .

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