दूर्मिल सवैया (छन्द)
पल में उमड़ी मन में उमड़ी, सबके दिल को पहचान गई।
जग जीत गई मन डोल उठा रस प्रीति लसे वह आन गई।
नभ से उतरी जग में उमड़ी, जग में सबके मन भाय गई।
सबके मन में सबके तन में, रस प्रेमसुधा बरसाय गई॥१॥
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दिल में अब याद सतावत है तुमसा नहि नैन दिखावत है।
नहि प्रेम पिया परिचावत हो मनमा यह रोग लगावत है ।
नहि प्रेमहि बात सुहात मना बिन चातक चाह जतावत है।
अब चैन नहीं मन भावत है बिन साथ सखा जिय लावत है॥२॥
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हर रोज हुआ लुट-पाट यहाँ , करते मरते रहते सब हैं।
करते सब शोर-शराब यहाँ , पर चैन गवा घुमते सब हैं।
नहि आवत है सब लोग यहाँ, घुमते फिरते चलते सब हैं।
लुट-पाट छकावत होत यहाँ,सबको मिलके फिरते सब हैं॥३॥
____________________रमेश कुमार सिंह /२८-०१-२०१६
आपने सुंदर सवैये रचने की सफल कोशिश की है। बधाई !
हर रोज हुआ लुट-पाट यहाँ , करते मरते रहते सब हैं।
करते सब शोर-शराब यहाँ , पर चैन गवा घुमते सब हैं। बहुत अच्छा .
शुक्रिया आदरणीय!!
शुक्रिया आदरणीय!!
बढियाँ
शुक्रिया सिंह जी!!
शुक्रिया सिंह जी!!
वाहह लाजवाब सुंदर सृजन के लिए बधाई
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