कविता

वातानुकूलित पीस ऑफ आर्ट

रोज़ सैर पर
आते-जाते समय
मेरे रास्ते में आता है
घर नं. बत्तीस
उसमें दिखता है
प्राकृतिक वातानुकूलित आर्ट पीस
जाते समय मुझे वह
हेज से बना ऊंचा हरा-भरा
प्राकृतिक वातानुकूलित आर्ट पीस
लगता है एक चट्टान की मानिंद
क्योंकि तब मुझे दिखता है
उसका दूसरा छोर भी
आते समय मुझे वह
लगता है एक दीवार की मानिंद
क्योंकि तब मुझे दिखता है
उसका दूसरा छोर भी
बहरहाल मुझे बहुत अच्छा लगता है
रुककर देखना उस
प्राकृतिक आर्ट पीस को
जो कि वातानुकूलित तो है ही
घर को सुरक्षित करता है धूप से
बनाता है वातानुकूलित
साथ ही बचाता है उसे
लोगों की प्रत्यक्ष नज़रों से
अब आप ही बताइए
इसे दीवार कहें या चट्टान!

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

6 thoughts on “वातानुकूलित पीस ऑफ आर्ट

  • विजय कुमार सिंघल

    बढिया बात !

    • लीला तिवानी

      प्रिय विजय भाई जी, शुक्रिया.

  • लीला बहन, मैं तो इसे आर्ट ही कहूँगा ,किओंकि इस में डब्बल परपज दिखाई पड़ता है .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, बहुत-बहुत शुक्रिया.

  • लीला तिवानी

    प्रिय सखी नीतू जी, शुक्रिया.

  • नीतू सिंह

    बढियां कविता

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