गीत/नवगीत

गीत : मैं कहते-कहते हार गया

मैं कहते-कहते हार गया मैं कहते-कहते हार गया.
क्यों असरहीन हर बात हुई क्यों कहना सब बेकार गया.

पहले मैं जो भी कहता था
वो सारा कुछ सुन लेता था.
जो उससे कह ना पाता था
वो उसको भी गुन लेता था.
ऐसा लगता खो आज कहीं पहले वाला किरदार गया.
मैं कहते-कहते हार गया मैं कहते-कहते हार गया.

अब जो भी कहता हूँ उससे
आनाकानी कर जाता है.
जो मेरे मन की करता था
वो मनमानी कर जाता है.
कल तक जो हद में रहता था वो कैसे हद से पार गया.
मैं कहते-कहते हार गया मैं कहते-कहते हार गया.

फिर भी मैंने यह सोच लिया-
मैं हाथ न उसका छोड़ूँगा.
देखूँ कब तक ज़िद करता है
मैं साथ न उसका छोड़ूँगा.
कल उसको कहना ही होगा-“जुड़ मन से मन का तार गया.
अब कभी न कहना जीवन में-मैं हार गया- मैं हार गया.”

डाॅ. कमलेश द्विवेदी
मो.09415474674

6 thoughts on “गीत : मैं कहते-कहते हार गया

  • फिर भी मैंने यह सोच लिया-

    मैं हाथ न उसका छोड़ूँगा.

    देखूँ कब तक ज़िद करता है

    मैं साथ न उसका छोड़ूँगा. वाह वाह , यह हुई ना बात !

  • फिर भी मैंने यह सोच लिया-

    मैं हाथ न उसका छोड़ूँगा.

    देखूँ कब तक ज़िद करता है

    मैं साथ न उसका छोड़ूँगा. वाह वाह , यह हुई ना बात !

  • लीला तिवानी

    प्रिय कमलेश भाई जी, अति सुंदर, अब कभी न कहना जीवन में-मैं हार गया.

  • लीला तिवानी

    प्रिय कमलेश भाई जी, अति सुंदर गीत. अब कभी न कहना जीवन में-मैं हार गया.

  • लीला तिवानी

    प्रिय कमलेश भाई जी, अति सुंदर गीत. अब कभी न कहना जीवन में.

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूबसूरत गीत !

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