गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

 

हिन्द का शान मान रखते हैं
हम हथेली पर जान रखते हैं

देखते हैं वतन की बदहाली
बन्द अपनी जुबान रखते हैं

रोज उड़ती नयी खबर कोई
खोल कर आँख कान रखते हैं

जिनको मेरी नहीं कदर कोई
उनके क़दमों में जान रखते हैं

आप जबसे हुये मिरे हमदम
दिल में थोडा गुमान रखते हैं

उनके होठों का तकद्दुस देखो
मुह में अपने वो पान रखते हैं

हम निभाते सभी धरम यारो
घर में गीता कुरान रखते हैं

— धर्म पाण्डेय

3 thoughts on “ग़ज़ल

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी ग़ज़ल !

  • हम निभाते सभी धरम यारो

    घर में गीता कुरान रखते हैं बहुत खूब .

  • हम निभाते सभी धरम यारो

    घर में गीता कुरान रखते हैं बहुत खूब .

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