ताटंक छंद—वैलेंटाइन ड़े
ताटंक छंद—-१६ +१४=३० मात्रा के गाल अंत २२२ मगण से होता है
वैलेंटाइन ड़े दुनियाँ मे – प्रेम तरंग उठाया है
नवयुवक युवतियाँ को देखों -अब बूढ़ों को भरमाया है
हो युगल बंद स्वा–छ्न्द धरा – ऐसी सीख सिखाते हैं
भूल पुरानी रूढ़िवादिता- प्रेमी पाठ पढ़ाते हैं
मै हूँ यारा सतयुग वाला – कलियुग मन ना भाता है
पेंग बढ़ाते कलियुग वाले – सतयुग मन मुस्काता है
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’
१३/०२/२०१६
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प्रिय राजकिशोर भाई जी, प्रेम तरंग उठती रहे, शीतल-मंद-सुगंधित हवा बहे.
प्रिय राजकिशोर भाई जी, प्रेम तरंग उठती रहे, शीतल-मंद-सुगंधित हवा बहे.
बहन जी स्नेहिल आशीर्वाद के लिए आभार एवम् नमन्
बढ़िया !
आदरणीय जी आपके स्नेहिल प्रतिक्रिया एवम् हौसला अफजाई के लिए आभार एवम् नमन्