सामाजिक

कहा भी ना जाए, रहा भी ना जाए

आप भी सोचेंगे कि यह किया बात हुई कि मैं कहना भी चाहता हूँ लेकिन कह भी नहीं सकता। क्या करें, कभी कभी बातें ही ऐसी होती हैं कि लोग गुस्सा कर लेते हैं और कहने से जी हिचक्चाता है। लो आज यह मन की बात कह ही देता हूँ। यह बात इतनी बड़ी भी नहीं है लेकिन है यह हर किसी के मतलब की बात। सभी को याद होगा जब भारत में पिआज हर किसी को रुला रहे थे और मैं यहाँ इंगलैंड में बैठा ही रोया करता था किओंकि मैं तो पिआज बहुत और रोज़ ही खाता हूँ और अगर मैं इंडिया आया तो मेरे साथ तो वोह ही बात होगी ना, ” तेरा किया होगा कालिया!”. कभी टमाटर मह्न्घे, कभी कोई सब्जी मह्न्घी, सुन कर हम बाहर बैठों को ही कम्पकी लगती रहती है । लो अब मैं इस बात को सीधे ना कह कर कुछ घुमा फिरा के कहता हूँ।

यह बात बीस पचीस वर्ष की होगी, काम ख़तम करके हम कभी कभी अपनी कलब्ब में चले जाया करते थे, वहां स्नूकर या डार्ट खेलते और बीअर पीते पीते गप्पें हांकते रहते थे। एक पंजाबी लड़का जिस का नाम तो मुझे याद नहीं लेकिन उस का सरनेम बडिंग था और अंग्रेजी में उसे बैरिंग बोलते थे। उस ने एक खूबसूरत अँगरेज़ लड़की से शादी की हुई थी और उस का एक बेटा भी था। कभी कभी वोह भी आया करता था और कभी कलब्ब में कोई पार्टी हो तो उस की वीवी बेटा और सास ससुर भी आ जाते थे। एक रात पार्टी थी और वोह सभी आये हुए थे। बैरिंग बीअर का ग्लास पकडे सब दोस्तों से मिल रहा था तो मेरे टेबल पर भी आ बैठा। बातें करते करते मैंने बैरिंग से पूछ ही लिया, ” बैरिंग ! तुम ने एक अँगरेज़ लड़की से शादी की हुई है, तुम कैसा महसूस करते हो ?” बैरिंग हंस कर बोला, भमरा ! “मैंने पहले इंडियन लड़की से ही शादी की हुई थी लेकिन जितना दुःख उस ने मुझे दिया, मैं तुझे बता नहीं सकता लेकिन जब से मैंने डोरा से शादी की है, मेरी जिंदगी ही बदल गई है”। जब मैंने पुछा कैसे तो उस ने बीअर का एक घूँट पिया और बोला, ” डोरा मेरे सभी रिश्तेदारों से ऐसी घुली मिली है कि सभी हमारे घर आते जाते रहते हैं और सभ से बड़ी बात यह कि इस ने इंडिया से टूटा हुआ मेरा रिश्ता फिर से जोड़ दिया है क्योंकि शादी टूटने के बाद मुझे इंडिया के नाम से ही नफरत हो गई थी, यह रोटीआं सब्जी दाल यहाँ तक कि पकौड़े समोसे भी बना लेती है और इंडियन कुकिंग सीखती ही रहती है “. मेरे लिए उस की यह बात एक पहेली बन गई और मैंने कहा, “यार ज़रा खुल के बता “.

बैरिंग बोलने लगा, ” जब हमारी शादी हुई तो पहली बात जो डोरा ने मुझ से कही वोह थी कि वोह इंडिया देखना चाहती थी, उस की यह बात सुन कर मुझे फिकर हुआ कि यह इंडिया के बारे में किया सोचेगी कि इंडिया में तो गंद बहुत है और हमारा घर तो एक छोटे से गाँव में ही था। उस की बहुत ज़िद के कारण हम दो हफ्ते के लिए इंडिया चले गए, मिस्टर भमरा तुम विशवास नहीं करोगे, डोरा ने इंडिया इतना पसंद किया कि मुझे फिर आने की फ़र्माएश कर दी, एक दफा किया हुआ कि हम दोनों को काम से छुटी हो गई, तब हम दोनों स्टारब्रिज टाऊन में काम किया करते थे, डोरा ने मुझे इंडिया जाने को कह दिया और हम गाँव में आ गए, डोरा एक हस्पताल में हैड नर्स हुआ करती थी और कहीं भी जाना हो दुआईओं और छोटे मोटे ऑपरेशन करने का सामान साथ ले जाती थी, जब हम गाँव आये तो मेरा बड़ा भाई लंगड़ा कर चल रहा था, डोरा ने आते ही उस का पैर देखा, बड़े भाई इलाज करा-कराकर थक चुक्के थे, डोरा ने उसी वक्त उसका पैर धोया, पैर पर इंजैक्शन लगाया और पंदरा मिनट बाद उस की एड़ी के पीछे चीरा दे कर बीच से बड़ा हुआ कुछ मॉस निकाला और सफाई करके स्टिचज़ लगा दिए। कुछ हफ्ते बाद भाई बिलकुल ठीक से चलने लगा, बस फिर किया था डोरा सब की चहेती बन गई”

लो जी ! अब कहानी का असली मकसद शुरू है। बैरिंग फिर बोला, ” मिस्टर भमरा एक दिन डोरा मुझे कहने लगी, बैरिंग ! इंडिया आ कर मैंने एक बात नोटिस की है कि इंडियन लोग लेज़ी बहुत हैं, मैं हैरान होती हूँ कि गाँव में इतनी ज़मींन होते हुए भी लोग सब्ज़ी दूकान से खरीदते हैं जब कि इंडिया की ज़मीन और मौसम ऐसा है कि रात को बंदा मारकर दबा दो तो सुबह को ज़िंदा बाहर आ जाए “. उस की यह बात सुन कर मैं हंस पड़ा और बोला, “तुम कहना किया चाहती हो ?”. डोरा बोली, यहां से भी सब्ज़िओं के बीज और पौदे मिलते हैं मुझे वहां ले चलो, फिर बताउंगी “. दूसरे दिन मैं उसे शहर ले गिया और लोगों से पूछकर वहां जा पहुंचे यहां लोग सब्ज़ी की पनीरी (पौदे) और बीज बेचते हैं। डोरा ने वहां से प्याज़ की पनीरी , बैंगन, शिमला मिर्च और छोटी हरी मिर्च और कुछ टमाटर के पौदे लिए और साथ ही बहुत से सूखे बीज लिए और हम घर आ गए। घर आते ही डोरा घर में कुछ खाली पडी ज़मीन को फावड़े से कुरेदने लगी लेकिन ज़मीन सख्त थी। मैंने फावड़ा उस के हाथों से छीन लिया और खुद काम करने लगा, मुझ को देख कर मेरा भाई और घर के सभी लोग आ गए। सभी काम करने लगे और शाम तक सारी ज़मीन आटे की तरह हो गई और दूसरे दिन प्याज़ और सभी सब्जीआं लगा कर पाइप से पानी दे दिया। डोरा ने यही खत्म नहीं किया, उस ने घर की छत पर पड़े पुराने माटी के बर्तनों को तोड़ कर, उन में मट्टी डाल कर बचे हुए मिर्चों के पौदे लगा दिए। मिस्टर भमरा तुम मानोगे नहीं, कुछ ही महीनों में प्याज़ मोटे मोटे हो गए और सब्ज़ी इतनी हुई कि हम रेहड़ी वाले को बेचने लगे क्योंकि हम इतनी खा तो सकते नहीं थे । इस में एक बात है कि हम को रोज़ पानी देना होता था और कम्पोस्ट भी डालनी होती थी।

लो जी कहानी को मैं और आगे नहीं ले जाऊँगा क्योंकि पिक्चर तो और भी है मेरे दोस्त ! अब मैं खुद इस कहानी का आख़री भाग कह कर अपनी बात का अंत करूँगा। क्योंकि मैं खुद खेतों में काम कर चुक्का हूँ, इस लिए जानता हूँ कि घर में जगह कितनी भी कम क्यों ना हो कुछ न कुछ तो हम घर में उगा ही सकते हैं, सिर्फ हिम्मत की जरुरत है। पहले पहल कुछ खरच होगा लेकिन फिर तो मिहनत और हिम्मत ही है। हम फूल भी तो लगाते हैं, मिर्च का प्लांट क्यों नहीं लगा सकते ? धनिआ और पुदीना क्यों नहीं उगा सकते ? घर की छत पर पंदरा बीस गमले मट्टी से भर कर कुछ भी उगा सकते हैं। टमाटर, मिर्च, शिमला मिर्च, बैंगन, करेला और यहां तक कि छत पर एक बड़ी लकड़ी की ट्रे बना कर उस में प्याज़ उगा सकते हैं। प्याज़ के बीज जिस को कलौंजी बोलते हैं, उस का एक पैकेट सारा साल खत्म नहीं होगा। जैसे जैसे आप इस हॉबी में मसरूफ होते जाएंगे आप को अपनी गलतिओं का भी अहसास होने लगेगा और आप उस को दरुस्त भी करते जाएंगे। मेरा पूरा विशवास है कि एक साल आप ने ऐसा कर लिया तो ज़िंदगी में प्याज़ आप को कभी नहीं रुलाएंगे। लो जी ! अब तो मैंने कह दिया, आप गुसा करेंगे या नहीं, यह तो आप के कॉमेंट ही बताएँगे।

4 thoughts on “कहा भी ना जाए, रहा भी ना जाए

  • मनमोहन कुमार आर्य

    आपकी कहानी पढ़कर श्रीमती डोरा देवी जी को दिल से प्रणाम करने का भाव बना है। विदेश में जन्मी व विदेशी संस्कारों की महिला के लिए ऐसा करना मन को आंदोलित करता है। हम भारतीय इतने क्यों गिर गएँ हैं? प्राचीन काल में हमारे यहाँ सभी लोग गाय पालते थे जिससे घर में प्रचुर मात्रा में दूध, दही, माखन और घी आदि होता था। बाद में कुछ बड़े नेता लोग लोग आये। उन्होंने गोमांस का निर्यात शुरू किया और गो पालने वाले गो पालन को बोझ समझने लगे। यदि आज के हमारे धार्मिक नेता, शिक्षक, राजनैतिक नेता और ब्यूरोक्रेट सुधर जाएँ तो क्रांति आ सकती है. इस कहानी का मन पर गहरा असर हुआ है। मैं डोरा देवी जी को ह्रदय से प्रणाम करता हूँ। सादर।

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. वास्तव में अनुशासन और पाबंदियों की हद में रहने के अभ्यास के कारण विदेश के लोग बहुत मेहनती हो जाते हैं, इसमें कोई शक नहीं. भारतीय लोग भी वहां अपनी भारतीयता को बनाए रखने के लिए बहुत कुछ करते रहते हैं. हमारे पास कई लोग अपने किचन गार्डन से लौकी, ज़ुकीनी, मिर्च आदि भेजते रहते हैं, हम भी उनको आम, संतरे और नीबू भेजते रहते हैं. यहां अपने घर-गार्डन-लॉन आदि को एकदम क्लीन रखना होता है, अन्यथा जुर्माना लग जाता है, इसलिए लोगों को आदत भी पड़ जाती है. एक बात है, यहां लोग मेहनत करके भी हमेशा खुश रहते हैं.

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      लीला बहन , यह जो कहानी मैंने लिखी है बिलकुल सच्ची है .जो आप ने लिखा है अक्षर अक्षर सच है .इंग्लैण्ड का मौसम खेती बाड़ी के लिए अनकूल नहीं है ,फिर भी मई से सतम्बर तक कुछ महीने मिल जाते हैं और इन में लोग जितना भी हो सके अपने अपने गार्डनों में उगाते हैं .आप ने तो सारा देखा है ,आप से ज़िआदा कौन जान सकता है ,एक बात आप ने बहुत सही सही लिखी है कि जो भारती गार्डनों में उगाते हैं खुश हो कर उगाते हैं .इंडिया का मौसम इतना अच्छा है कि हर मौसम में कुछ न कुछ बीजा जा सकता है ,यही मेरे लिखने का मकसद है .गाँव में हमारी ज़मीन हैं .एक दफा जब हम गए तो हमारे घर वाले सब्ज़िआन दुकानों से ले रहे थे ,मैंने कहा तो कुछ नहीं लेकिन दिल में बहुत कुछ था .अगर भारत में हर कोई घरों में कुछ ना कुछ बीजने लगे तो कितनी ज़मीन कुछ और बीजने के लिए इस्तेमाल हो सकती है .

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. वास्तव में अनुशासन और पाबंदियों की हद में रहने के अभ्यास के कारण विदेश के लोग बहुत मेहनती हो जाते हैं, इसमें कोई शक नहीं. भारतीय लोग भी वहां अपनी भारतीयता को बनाए रखने के लिए बहुत कुछ करते रहते हैं. हमारे पास कई लोग अपने किचन गार्डन से लौकी, ज़ुकीनी, मिर्च आदि भेजते रहते हैं, हम भी उनको आम, संतरे और नीबू भेजते रहते हैं. यहां अपने घर-गार्डन-लॉन आदि को एकदम क्लीन रखना होता है, अन्यथा जुर्माना लग जाता है, इसलिए लोगों को आदत भी पड़ जाती है. एक बात है, यहां लोह मेहनत करके भी हमेशा खुश रहते हैं.

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