लघुकथा

लघुकथा : निःशब्द

जनगणना ड्यूटी के दौरान एक कर्मचारी का अपने कार्यालय के पीयन के घर जाना हुआ। पीयन ने खुशी खुशी अपने बाॅस की यथासामथ्र्य सेवा की। पीयन के माता पिता भी कर्मचारी के पास बैठ बातें करने लगे। जान पहचान हुई तो पता चला कि कर्मचारी के दादा बहुत गरीब परिवार से हुआ करते थे और इसी गाँव में काम किया करते थे।

इस बात का पता चलते ही पीयन के माता पिता के मन में अहम भाव उभर आया। स्वयं को उच्च साबित करने के उद्देश्य से, रूढ़िवादी विचारों से ग्रस्त पीयन के पिता ने कर्मचारी को सुनाते हुए कहा “देखो क्या समय आ गया है कल तक जो हमारे आगे काम किया करते थे, आज उनके बच्चे हमारे सामने कुर्सी पर बैठे हैं।”

कर्मचारी ने पीयन की ओर देखते हुए सुनाया “बाबा जी ! ये तो समय समय की बात है कल तक हमारे पूर्वज आपके हुक्म के गुलाम हुआ करते थे और आज आपके बच्चे हमारे हुक्म के गुलाम हैं।”

पीयन के पिता जवाब सुन निःशब्द हो गये। कर्मचारी ने अपने आंकड़े पूरे किये और अगले घर में दाखिल हो गया।

— अनन्त आलोक

अनन्त आलोक

नाम - अनन्त आलोक जन्म - 28 - 10 - 1974 षिक्षा - वाणिज्य स्नातक शिक्षा स्नातक, पी.जी.डी.आए.डी., व्यवसाय - अध्यापन विधाएं - कविता, गीत, ग़़ज़ल, हाइकु बाल कविता, लेख, कहानी, निबन्ध, संस्मरण, लघुकथा, लोक - कथा, मुक्तक एवं संपादन। लेखन माध्यम - हिन्दी, हिमाचली एंव अंग्रेजी। विशेष- हि0प्र0 सिरमौर कला संगम द्वारा सम्मानित पर्वतालोक की उपाधि - विभिन्न शैक्षिक तथा सामाजिक संस्थाओं द्वारा अनेकों प्रशस्ति पत्र, सम्मान - नौणी विश्वविद्यालय द्वारा सम्मान व प्रशस्ति पत्र - दो वर्ष पत्रकारिता आकाशवाणी से रचनाएं प्रसारित - दर्जनों पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित - काव्य सम्मेलनों में निरंतर भागीदारी - चार दर्जन से अधिक बाल कविताएं, कहानियां विभिन्न बाल पत्रिकाओं में प्रकाशित प्रकाशन - तलाश (काव्य संग्रह) 2011 संपर्क सूत्र - साहित्यालोक, बायरी, डा0 ददाहू, त0 नाहन, जि0 सिरमौर, हि0प्र0 173022 9418740772, 9816642167

3 thoughts on “लघुकथा : निःशब्द

  • लीला तिवानी

    प्रिय अनंत भाई जी, अति उत्तम.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बात को सोच समझ कर ना करने का यहीं परिणाम होता है .

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

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