गंगा
———- गंगा ————
प्रदूषित नदी आगे बढ़ी तो गंगा चहकी ,” आओ बहन ! तुम्हारा भी स्वागत है।”
“शुक्रिया गंगे !” कहते हुए प्रदूषित नदी गंगा की बांहों में समां गई। आज पहली बार उसके बदबूदार पानी ने खुल कर साँस ली थी, मगर गंगा की सांसे फूलने लगीं। फिर अचानक ही हाँफती हुई गंगा के कदम लड़खड़ाने लगे दिल धक से बैठने लगा, सामने से अनगिनत और ग़लीज़ जलधाराएँ उसकी ओर बढ़ रही थीं। ———————————
सोचने को बाध्य करती लघुकथा.
आदरणीय विजय कुमार जी आप की प्रतिक्रिया ने लघुकथा को सार्थकता प्रदान कर दी. शुक्रिया आप का .