लघुकथा

लघुकथा : बीच सफ़र में

रिचा और रणदीप दोनों एक ही सोसायटी में रहते हैं, लेकिन दोनों ही सोसायटी में रहने वाले और लड़के लड़कियों से कुछ अलग हैं। अब दोनों अपनी मंजिल को पाने के लिए लगे है लेकिन ये भी कहते हैं कि जब तक जिंदगी में मौज मस्ती न हो तो जिंदगी जीने का कोई मतलब नहीं बनता।

सोसायटी के एक प्रोग्राम में दोनों की नजरें टकरा गई। फिर क्या था मुलाकातें ही फोन पर बातें हुई। समय भी धोखा खा गया। पता ही न चला कि आखिर कब दोनों की आँखें चार हो गयीं, मतलब प्यार हो गया। रणदीप को किसी काम से अचानक बाहर जाना पड़ा। रणदीप बाहर तो था लेकिन उसका दिल शायद रिचा के पास ही था इधर रिचा भी अपने दिल की बात समझ गयी।

कुछ दिन बाद ही रणदीप वापस आ गया। लेकिन समझ तो दोनों ही गए थे कि दोनों ही एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते।
लेकिन अभी तक दोनों में से किसी मे भी एक दूसरे से प्यार का इजहार नहीं किया था। अगले ही दिन सोसायटी में एक पूजन था। दोनों ने मन में फैसला किया कि पूजन के बाद मौका देखकर दोनों ही एक-दूसरे से अपने प्यार का इज़हार कर देगे।

रिचा रणदीप के लिए और रणदीप रिचा के लिए गिफ्ट लेने के लिए मार्केट आ गए लेकिन दोनों ने ही एक दूसरे को भनक तक नहीं लगने दी और पहुँच गए मार्केट। एक सुंदर सा उपहार डूब ही रहे थे दोनों। आखिर नजरें कब तक छिपेंगीं। दोनों ने एक दूसरे को देख लिया। फिर क्या दोनों ने अपने दिमाग के घोड़ों को दौडाते हुए बहाना मार दिया और किसी और के साथ आने का इशारा कर दिया। अगले ही पल दोनों अपनी जगह से गायब थे, शायद ये साेच लिया हो कि दूसरा उसे गिफ्ट लेते हुए न देख ले।

रिचा लाल रंग के सूट में थी। अचानक किसी के चिल्लाने की आवाज सुनाई दी। सबकी नजरें अपने काम से हट गयी और आँखों ने सीधे चिल्लाहट की ओर देखा। वहाँ क्या देखती हैं एक भयावह मंजर।

एक लड़की को गाड़ी ने टक्कर मार दी। भीड़ जमा हो गयी। जिस लड़की को टक्कर लगी उसने लाल रंग का सूट पहना हुआ था। रणदीप ने आगे जाकर देखा तो चिल्ला उठा- रिचा।
रणदीप ने लड़की को अपनी गोद मे उठा लिया और रो-रो कर कहने लगा।

रणदीप- ‘रिचा तुम मुझे छोड़कर नहीं जा सकती । मैं तुम्हारे बिना कैसे जी पाऊंगा।’
‘रणदीप’ -पीछे से आवाज आई।
रणदीप पीछे मुडा तो क्या देखता है पीछे रिचा खडी है।
रणदीप तुरंत उठा और बोला – ‘रिचा’।

अगले ही पल दोनों आमने सामने थे। रणदीप ने रिचा को गले से लगाया और रोने लगा। रिचा कुछ बोलने वाली ही थी कि उससे पहले ही रणदीप ने रिचा के मुँह पर हाथ रख दिया और फिर गले लगा लिया।

रणदीप ने रोते हुए कहा- “रिचा मुझे कभी बीच सफर में छोड़कर मत जाना । मैं जी नहीं पाऊंगा।” दोनों एक दूसरे को रोते हुए अपने प्यार का इजहार करते हैं।

3 thoughts on “लघुकथा : बीच सफ़र में

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी लघुकथा.

  • लीला तिवानी

    प्रिय विकाश भाई जी, अति सुंदर.

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