ग़ज़ल
वक़्त,आँसू ,शायरी, ग़म, मयक़दा कुछ भी नहीं।
दर्द जो तुमने दिया उसकी दवा कुछ भी नहीं।
एक पत्ता आ गया उड़ कर हवा के साथ में।
और पतझड़ के सिवा उसमें लिखा कुछ भी नहीं।
भूख से क्यूँ मर गया कोई ख़ुदा के सामने,
या ख़ुदा सबसे बड़ा या फिर ख़ुदा कुछ भी नहीं।
खा गया ईमान तक जो भूख लालच की लगी,
ख़ाक में इंसान की फिर क्यों मिला कुछ भी नहीं।
इश्क़ ने सिखला दिए हमको हुनर कुछ काम के,
हम समझ सब कुछ गए उसने कहा कुछ भी नहीं।
ऐब ख़ुद में हैं उन्हें तू दूर कर खुद से ज़रा,
तू जिसे दिखला रहा वो आइना कुछ भी नहीं।
भर गए पन्ने कई जो अश्क़ निकले याद में,
रोशनाई या कलम मैंने छुआ कुछ भी नहीं।
-प्रवीण श्रीवास्तव ‘प्रसून’
फतेहपुर उ.प्र.
08896865866
वाह वाह ! बहुत शानदार ग़ज़ल !!