चढ़ने लगी हैं हसरते परवान रफ्ता रफ्ता..
चढ़ने लगी हैं हसरते परवान रफ्ता रफ्ता।
हम हो रहे हैं जानेमन की जान रफ्ता रफ्ता
वो मेरी चाहतों का अक्स बनने लगे है।
हम वारने लगे हैं उनपे जान रफ्ता रफ्ता॥
ये रंग-ए-मोहब्बत है हौले हौले चढ़ेगा।
हो जायेगा ये हम पे मेहरबान रफ्ता रफ्ता॥
गम भूल कर नये जहान की तलाश कर।
आजायेगी लबों भी मुस्कान रफ्ता रफ्ता॥
कुछ मेरी धडकनें सुनो कुछ आपकी सुनूं।
होने दो दिल से दिल की पहचान रफ्ता रफ्ता॥
इन रास्तों पे हमकदम जो बन के चलेगें।
हो जायेगें ये रास्ते आसान रफ्ता रफ्ता॥
इस जिन्दगी को मस्तमलंग की तरहा जियो।
हो जायेगीं फिर ज़िन्दगी ईमान रफ्ता रफ्ता॥
सतीश बंसल
प्रिय सतीश भाई जी, रफ्ता-रफ्ता ही सही, चलते रहना ही ज़िंदगी है. अति सुंदर.
बहुत शुक्रिया लीला तिवानी बहन…
बहुत खूब !
शुक्रिया आद. विजय जी…
शुक्रिया आद. विजय जी…