गीतिका/ग़ज़ल

चढ़ने लगी हैं हसरते परवान रफ्ता रफ्ता..

चढ़ने लगी हैं हसरते परवान रफ्ता रफ्ता।
हम हो रहे हैं जानेमन की जान रफ्ता रफ्ता

वो मेरी चाहतों का अक्स बनने लगे है।
हम वारने लगे हैं उनपे जान रफ्ता रफ्ता॥

ये रंग-ए-मोहब्बत है हौले हौले चढ़ेगा।
हो जायेगा ये हम पे मेहरबान रफ्ता रफ्ता॥

गम भूल कर नये जहान की तलाश कर।
आजायेगी लबों भी मुस्कान रफ्ता रफ्ता॥

कुछ मेरी धडकनें सुनो कुछ आपकी सुनूं।
होने दो दिल से दिल की पहचान रफ्ता रफ्ता॥

इन रास्तों पे हमकदम जो बन के चलेगें।
हो जायेगें ये रास्ते आसान रफ्ता रफ्ता॥

इस जिन्दगी को मस्तमलंग की तरहा जियो।
हो जायेगीं फिर ज़िन्दगी ईमान रफ्ता रफ्ता॥

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.

5 thoughts on “चढ़ने लगी हैं हसरते परवान रफ्ता रफ्ता..

  • लीला तिवानी

    प्रिय सतीश भाई जी, रफ्ता-रफ्ता ही सही, चलते रहना ही ज़िंदगी है. अति सुंदर.

    • सतीश बंसल

      बहुत शुक्रिया लीला तिवानी बहन…

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

    • सतीश बंसल

      शुक्रिया आद. विजय जी…

    • सतीश बंसल

      शुक्रिया आद. विजय जी…

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