कविता

आरक्षण…

आरक्षण-आरक्षण करने वालें
कान खोलकर सुन ले,
बहुत ले लियें आरक्षण
अब बिन आरक्षण के भी जी ले|
मचाते हो तबाही
इसी आरक्षण की ओट ले,
लूट लेते मासुमो की अस्मत
इसी की होड में|
दिनदहाडे करते हो नरसंहार
फिर भी सजा सें वंचित रह जाते हो,
जब तुम्हारे बाजुओ मे ही दम है
तो क्यो आरक्षण की गुहार लगाते हो|
सामाजिक आरक्षण कहकर इसे
राजनीतिक मुद्दा बनातें हो
सीधे-सादे लोगो को भ्रमित कर
उसे ही उल्लू बनाते हो|
जनता भी अब पागल नही
तेरी कहानी समझ गयी है,
उसे आरक्षण की जरूरी नही
अब अपना अवसर देख रही हैं|
उखाड फेकना हैं आरक्षण
सोने की चिडिया कहलाने वाला देश से,
तब जात पात का भेदभाव
मिट जायेगा भारत देश से|
निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४

2 thoughts on “आरक्षण…

  • विजय कुमार सिंघल

    आरक्षण पर अच्छी कविता !

    • निवेदिता चतुर्वेदी

      धन्यबाद

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