कविता

बहुत सह ली तेरी गद्दारी

बहुत सह ली तेरी गद्दारी ,
अब नही सह पाऊँगी|
ऐसे देश द्रोहियों को ,
देश से निकाल फेकूँगी|
जगह-जगह दंगा फैलाकर,
करते हो अपनी मनमानी|
दहशत मे डाल गॉव घर को,
बनते हो हिन्दुस्तानी|
जिसने तुम्हे पाला पोसा,
आज उसे ही बदनाम करते हो |
भारती मॉ के श्वेत ऑचल में,
खुनी दाग लगाते हो|
नमक खाते हो देश का
गुणगान करते हो विदेश का|
कुछ तो शर्म करों अब ,
लाज रखो अपनी मॉ की कोख की|
निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४

5 thoughts on “बहुत सह ली तेरी गद्दारी

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया रचना !

    • निवेदिता चतुर्वेदी

      धन्यबाद सर

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    आज के भारत के कुछ लोग !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सार्थक लेखन

    • निवेदिता चतुर्वेदी

      धन्यबाद

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