कविता
~~~”पुष्प”~~~
“नंदन अभिनन्दन
अर्पण समर्पण
स्नेह सम्मान
मित्रता उल्लास
भक्ति श्रृंगार
से सजे सुरभित विकसित पुष्प
जो मात्र सिर्फ पुष्प नहीं,
उनमें प्राण है, उनमें जीवन है
उनमें क्षमता है, उनमें रंग है
उनमे कण्टक हैं तो वो कोमल भी हैं,
वो कभी ईश चरणों में, कभी काले केशों में
कभी वेदी पर, कभी देवी पर
कभी सेज पर, कभी देश पर
कभी माला में, कभी दुशाला में
कभी होली में, कभी रंगोली में
पौधों की गोद से पल्लवित होकर
उपवन को शोभित करते
प्रेम, पावनता व अंतरंगता के प्रतीमान बन
प्राणियों के क्षणिक सुख हेतु
सर्वस्व न्योछावर कर
माटी में विलुप्त हो जाते।”
द्रवित ह्रदय से
इन प्राणप्रिय प्रसूनों को
मस्तक पर शोभायमान करती हूँ।
नीरजा मेहता
अच्छी कविता !