गीत/नवगीत

गीत : कुछ तो करो शरम

मित्रो, बचपन में एक गीत बहुत सुना करते थे “आओ बच्चो तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की”। उसमें हमारे गौरवमय इतिहास का उल्लेख था। आज सोचता हूँ कि हमने इस बहुमूल्य विरासत का क्या हाल बना दिया है। उसी गीत की धुन पर कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं।

कैसे बच्चों को दिखलाऊँ
झांकी हिंदुस्तान की
बन के आज तमाशा रह गई
धरती ये बलिदान की

कुछ तो करो शरम
कुछ तो करो शरम

वंदेमातरम् कहने में भी
लाज इन्हें अब आती है
आज की पीढ़ी की तो हनी की
बस यो-यो ही भाती है
अपनी हर एक परंपरा की
खुल के हँसी उड़ाती है
उसी थाली में छेद कर रही
जिस थाली में खाती है
भगवान के आगे सर ना झुकाए
जय बोले शैतान की
बन के आज तमाशा रह गई
धरती ये बलिदान की

कुछ तो करो शरम
कुछ तो करो शरम

नहीं रहा कोई हिंदुस्तानी
कोई पटेल कोई जाट रहा
आरक्षण अब दीमक बनकर
प्रतिभाओं को चाट रहा
स्वार्थ में अँधा होकर भाई
भाई को ही काट रहा
मिलकर साथ पड़ोसी के
अपने घर को ही बाँट रहा
देखो कैसी हालत हो गई
अपने देश महान की
बन के आज तमाशा रह गई
धरती ये बलिदान की

कुछ तो करो शरम
कुछ तो करो शरम

आदर्श हुए अफज़ल, हाफिज़
झांसी की रानी याद नहीं
भगतसिंह, सुखदेव की हमको
अब कुर्बानी याद नहीं
जलियांवाला बाग की थी जो
करूण कहानी याद नहीं
अपने गौरवमय अतीत की
कोई निशानी याद नहीं
अपने कंधों पर ढोते हैं
अर्थी अपनी शान की
बन के आज तमाशा रह गई
धरती ये बलिदान की

कुछ तो करो शरम
कुछ तो करो शरम

कैसे बच्चों को दिखलाऊँ
झांकी हिंदुस्तान की
बन के आज तमाशा
रह गई धरती ये बलिदान की

कुछ तो करो शरम
कुछ तो करो शरम

— भरत मल्होत्रा

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]