कविता

सोन मछरिया

ये क्या तरल है जो
मेरे फेफड़ों के अंदर-बाहर बना हरकारा  है
तुम्हारी चाह की साँसे हैं
फेफड़ो में धधकती दुबारा तिबारा चौबारा है

तालाब में भी
कुछ न कुछ जल खारा है
तालाब में मिश्रित खारापन
मेरे आसुंओं की जलधारा है

तुम्हारा मिलना है
जैसे सोन मछरिया से समन्दर की धारा है
कभी नहीं मिलते जो
जिनका न मिलना ही जीवन सारा है 

*****

*नीतू सिंह

नाम नीतू सिंह ‘रेणुका’ जन्मतिथि 30 जून 1984 साहित्यिक उपलब्धि विश्व हिन्दी सचिवालय, मारिशस द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी कविता प्रतियोगिता 2011 में प्रथम पुरस्कार। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कहानी, कविता इत्यादि का प्रकाशन। प्रकाशित रचनाएं ‘मेरा गगन’ नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2013) ‘समुद्र की रेत’ नामक कहानी संग्रह(प्रकाशन वर्ष - 2016), 'मन का मनका फेर' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष -2017) तथा 'क्योंकि मैं औरत हूँ?' नामक काव्य संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) तथा 'सात दिन की माँ तथा अन्य कहानियाँ' नामक कहानी संग्रह (प्रकाशन वर्ष - 2018) प्रकाशित। रूचि लिखना और पढ़ना ई-मेल [email protected]

2 thoughts on “सोन मछरिया

  • नीतू सिंह

    धन्यवाद

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह ! बहुत खूब !!

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