ग़ज़ल : हम गुल नहीं गुलदान के तो क्या हुआ
हम गुल नहीं गुलदान के तो क्या हुआ।
चर्चे नहीं सम्मान के तो क्या हुआ॥
हम अपने घरौंदे के बादशाह हैं।
पहरे हैं आसमान पे तो क्या हुआ॥
उनको खुशी मिली है ये बहुत है बस।
बन आयी अपनी जान पे तो क्या हुआ॥
धोखे का हुनर हमने सीखा ही नहीं।
तोहमत लगी ईमान पे तो क्या हुआ॥
सच है ज़मीन पर अभी काफी है ये।
छल पहुंचा आसमान पे तो क्या हुआ॥
कल तक जो थे महान बेईमान हो गये।
वो खेले उनके मान से तो क्या हुआ॥
वक्त है दोहरायेगा फिर ख़ुद को ये।
वो मुकरे ग़र पहचान से तो क्या हुआ॥
— सतीश बंसल
धोखे का हुनर न सीखने वाला सुखी रहता है.
आभार आद. लीला जी..
बहुत अच्छी ग़ज़ल !
शुक्रिया आद. विजय जी…
शुक्रिया आद. विजय जी…
धन्यवाद आद. विजय जी…