गीत/नवगीत

स्वच्छता अभियान गीत

नवयुग का आहवान
आओ आज करें हम मिलकर, नवयुग का आह्वान
जब तक स्वच्छ न होगा भारत, सतत् चले अभियान।
गली-गाँव-नगरों-शहरों की, चलो बदल दें काया
देवराज भी गर देखें तो, समझ न पाए माया देवलोक का हर बाशिंदा, हो जाए हैरान, जब तक स्वच्छ न होगा भारत, सतत चले अभियान।1।

वन-उपवन और सकल इमारत, भारत माँ की थाती,
सकल विश्व के नीलगगन में, अपना गौरव गाती,
इनको मैला करके तुम मत खोना अपनी शान
जब तक स्वच्छ न होगा भारत, सतत् चले अभियान।2।
गंगा की निर्मल धाराएँ, इसका रूप सँवारे,
युग-युग से सागर की लहरें, इसके चरण पखारे,
ऋतुराज और बरखा रानी, इसका रखती ध्यान,
जब तक स्वच्छ न होगा भारत, सतत् चले अभियान।3।
जहाँ स्वच्छता वास करे वहाँ, कमला धन बरसाती,
विमला भी वीणा के सुर में, ज्ञान के गीत लुटाती,
रखो साफ इस देवधरा को, रखो स्वच्छ ईमान,
जब तक स्वच्छ न होगा भारत, सतत् चले अभियान।4।
डाॅ. शरद सुनेरी
प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक -हिन्दी
केन्द्रीय विद्यालय कामठी।

मातृभूमि-वंदना
आज तेरा अभिषेक करूँ मैं, सप्त-सिंधु की धारों से
हार तेरे मैं गुंथ लाऊँगा, सूरज-चाँद-सितारों से,
पूरब-पश्चिम की लाली ले, तुझको हिना लगाऊँगा,
सूर्य रश्मियों के कंगनों से, कर तेरे भर जाऊँगा,
दूज चाँद की नथनी संुदर, तेरा रूप सँवारेगी,
पैंजनियाँ गंगा-जमुना की, पग तेरे झनकारेगी,
बाल-अरुण की बिंदिया तेरे, भाल बीच मढ़ जाऊँ मैं
कमर सिंहनी में बिजुरी की, करधनियाँ पहनाऊँ मैं
वन-उपवन की सारी कलियाँ, गजरा बनकर करे सिंगार
बरखा-‘शरद’-हेमंत-शिशिर संग, चँवर डुलाए मस्त बहार
मगर आलता श्री चरणों का, कहीं नहीं जब पाता हूँ
मातृभूमि तेरे चरणों में, अपना लहू चढ़ाता हूँ।

करना ना आराम
गंग-जमुन की दिव्य धरा ये, होवे ना बदनाम
जब तक रूप न निखरे इसका, करना ना आराम।
धरम-करम की नादानी से, मलिन हुआ जल सारा,
नीर बिना जग जल जाएगा, सोचा न ही विचारा,
कलयुग के कलपुर्ज़े कल-कल, करते हैं मनमानी
मगरी बिलखती धाराओं की, हमने बात ना मानी,
कुल्हाड़ी पर धर कर पग को, मचा दिया कोहराम,
गंग-जमुन की दिव्य धरा ये, होवे ना बदनाम। 1।
हमको तो कुदरत ने हरदम, हरियाली दिखलाई,
हमीं अकल के अंधे ठहरे, बात समझ न आई?
नहीं सँवारी हमने बगिया, नहीं वनों को पाला,
इतने काटे वन-उपवन सब, निकल गया दीवाला,
मैली-से-मैली कर हमने, लिया राम का नाम,
गंग-जमुन की दिव्य धरा ये, होवे ना बदनाम । 2।
माटी के पुतलों मरकर तुम, माटी हो जाओगे,
पोथी पढ़-पढ़कर लाखों तुम, सुधर नहीं पाओगे?
कूड़ा-करकट भरी धरा पर, होगा जमन दोबारा,
तब सोचोगे क्यों ना हमने, पहले इसे सँवारा,
रखो साफ भारत माता कोे, बनो ना नमकहराम,
गंग-जमुन की दिव्य धरा ये, होवे ना बदनाम । 3।

शरद सुनेरी
केन्द्रीय विद्यालय कामठी

देश फिर मुसकाएगा
सारे मिल कोशिश करें तो, देश फिर मुसकाएगा
स्वच्छ गोदी में धरा की, ध्वज सदा लहराएगा।

ठस ज़मीं का कोना-कोना, पाक काबा-सा रहे
आसमाँ महके कि ऐसे, वायु में चंदन रहे
धूल का कण-कण यहाँ, कलियों-सा फिर इतराएगा।1।

सिर्फ रंगों के ही फूलों, से नहीं सजता चमन
इसकी क्यारी को बचाने, करने हैं लाखों जतन
बागवाँ तेरा करम ये, गुलसिताँ महकाएगा।2।

वतन है अपनी निशानी, वतन ही अभिमान है
वतन जीने का बहाना, है नहीं वह जान है
दाग दामन में लगाकर, तू भला क्या पाएगा?3।
5. 03. 2016

ये सारे गीत प्रधानमंत्री श्री मोदी जी के स्वच्छता अभियान से संबंधित हैं।

 

One thought on “स्वच्छता अभियान गीत

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छे गीत !

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