इंसानियत और दोस्ती
8000 कि.मी. से हर साल दोस्त से मिलने आता है पेंग्विन ब्राजील के रियो डि जेनेरियो के बाहर एक गांव में साल 2011 में जोआउ परेरा डिसूजा नाम के एक मछुआरे को चट्टानों के बीच एक छोटा सा पेंग्विन दिखा। पेंग्विन भूखा था और तेल में सना हुआ था। डिसूजा उसे अपने घर ले आए और उसकी देखभाल की। उन्होंने उस साउथ अमेरिकी मैजलैनिक पेंग्विन का नाम भी रखा- डिंडिम। जब डिंडिम स्वस्थ हो गया तो डिसूजा ने उसे वापस समुद्र में छोड़ दिया। तब डिसूजा ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि डिंडिम को वह दोबारा देख पाएंगे। लेकिन, 71 वर्षीय डिसूजा उस समय चकित रह गए जब कुछ महीनों बाद ही डिंडिम वापस वहीं आ गया और डिसूजा को देखते ही पहचान गया। उसके बाद डिसूजा उसे अपने घर लेकर गए। अब डिंडिम जोआउ के साथ साल के 8 महीने बिताता है और साल के बाकी समय आर्जेंटिना और चिली के समुद्रतट पर ब्रीड करता है। 2011 से अब तक वह 5 बार अपने दोस्त से मिलने आ चुका है। अपने दोस्त से मिलने के लिए डिंडिम हर साल करीब 8 हजार किलोमीटर का सफर तय करता है। डिसूजा कहते हैं कि वह डिंडिम को अपने बच्चे की तरह मानते हैं।
वेदो में समदर्शिता का सिद्धांत निहित है। वेद में कहा गया है कि अपनी आत्मा में अन्य सभी प्राणियों की आत्मा को देखों और अन्य प्राणियों में व उनके समान अपनी आत्मा को देखों तो शोक वा मोह नहीं होगा। मनुष्य की यह विडम्बना है कि कुछ अज्ञ लोग पशु पक्षियों को अपने भोजन का पर्याय समझते हैं। वस्तुतः सभी पशु व पक्षी आदि हमारा यथार्थ भूत और भविष्य हैं। हम इन्ही योनियों में से आये हैं और भविष्य में कर्मानुसार पुनः इन योनियों में जाना पड़ सकता है। बन्धुवों सावधान। शाकाहारी बाणों। आपने दो जातियों की मित्रता का प्रेरक उदाहरण प्रस्तुत किया है। सादर।
प्रिय मनमोहन भाई जी, सटीक व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.
हमसे साझा करने के लिए आभार
आपका भी आभार.
पशु पक्षियों में अपने उपकारी के प्रति जितनी कृतज्ञता होती है, उसका अंश मात्र भी मनुष्यों में नहीं पाई जाती ! मानव इनसे बहुत कुछ सीख सकता है. ऐसी प्रेरक सत्य कथा को प्रस्तुत करने के लिए आभार, बहिन जी.
प्रिय विजय भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. सार्थक प्रतिक्रिया करने के लिए आभार.
सहमत हूँ
लीला बहन, पैन्गुइन के साथ इतनी गेहरी दोस्ती तो दिल को छू लेने वाली है . अगर जानवर इतनी गहरी दोस्ती निभा सकते हैं तो हम इंसान छोटी छोटी बात को लेकर किओं आपस में मन मुटाव रखते हैं ?
प्रिय गुरमैल भाई जी, यही तो हमारे समाज की विडंबना है. सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.