दो क्षणिकाएं
1
तुम्हारी याद
जैसे ठंडी चाय
खो चुकी गर्माहट
बिसर चुका है स्वाद ।।
2
सुनो दंभी पुरुष
मेरे आखों से जो बह रहा है ना
ये हो तुम..
बूँद बूँद ही सही
तुम दिल से उतर रहे हो
और मैं संवर रही हूँ ।।
1
तुम्हारी याद
जैसे ठंडी चाय
खो चुकी गर्माहट
बिसर चुका है स्वाद ।।
2
सुनो दंभी पुरुष
मेरे आखों से जो बह रहा है ना
ये हो तुम..
बूँद बूँद ही सही
तुम दिल से उतर रहे हो
और मैं संवर रही हूँ ।।
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सुंदर रचना
अच्छी क्षणिकाएं !