क्षणिका

दो क्षणिकाएं

1

तुम्हारी याद
जैसे ठंडी चाय
खो चुकी गर्माहट
बिसर चुका है स्वाद ।।

2

सुनो दंभी पुरुष
मेरे आखों से जो बह रहा है ना
ये हो तुम..
बूँद बूँद ही सही
तुम दिल से उतर रहे हो
और मैं संवर रही हूँ ।।

साधना सिंह

मै साधना सिंह, युपी के एक शहर गोरखपुर से हु । लिखने का शौक कॉलेज से ही था । मै किसी भी विधा से अनभिज्ञ हु बस अपने एहसास कागज पर उतार देती हु । कुछ पंक्तियो मे - छंदमुक्त हो या छंदबध मुझे क्या पता ये पंक्तिया बस एहसास है तुम्हारे होने का तुम्हे खोने का कोई एहसास जब जेहन मे संवरता है वही शब्द बन कर कागज पर निखरता है । धन्यवाद :)

2 thoughts on “दो क्षणिकाएं

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सुंदर रचना

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी क्षणिकाएं !

Comments are closed.