बालकहानी : पहले काम फिर नाम
चीकू एक प्यारा सा सुंदर बच्चा था । उसके घर में जानवरों से सबको प्यार था । उसके पापा ने तो एक बड़ा सा कुत्ता पाल रखा था । जिसका छोटा सा नटखट बच्चा था डिग्गू । एक दिन वे अपने मित्र के यहाँ से बिल्ली का बच्चा उठा लाये ।चीकू तो उसे देख उछल पड़ा -आह कितना सुंदर है !भूरी -भूरी आँखें, रुई सा सफेद ,मक्खन सा चिक -चिक चिकना !
‘पापा ,इसे तो मैं स्कूल ले जाऊंगा ।’
‘स्कूल ! कैसे ?’
‘बैग में से किताबें निकाल दूंगा और भूरी को अंदर घुसा दूंगा। किसी को पता भी नहीं लगेगा।’
‘जब म्याऊँ-म्याऊँ करेगी बच्चू तो मैडम की वो डांट पड़ेगी –वो डांट पड़ेगी कि दिन में ही तारे नजर आने लगेंगे।’
‘ओह तब मैं क्या करूं…?’
‘तुम स्कूल जाओ। भूरी तुम्हारे पीछे से डिग्गू के साथ खेलेगी। डिग्गू को भी तो एक साथी की जरूरत है।’
कुछ दिनों मेँ ही दोनों मेँ अच्छी पटने लगी।
एक दिन चीकू बोला – ‘भूरी ,तू सारे दिन उछलकूद में समय ख़राब करती रहती है। स्कूल से आकर आज तुझे पढ़ाऊंगा।’
‘लेकिन खेलने-कूदने से तो मैं मोटी -ताजी हो गई हूँ। दौड़ -दौड़ कर चूहे पकड़ सकती हूँ।’ भूरी मटकने लगी।
‘ऐसे मोटे-ताजे होने से क्या फायदा कि दिमाग में मच्छर ही मच्छर भर जाएँ और तुझे काटने लगें ।’
‘अरे बाप रे –। वे तो मेरा सारा खून पी जाएंगे — फिर मैं क्या करूँ !’
‘यही कि जो मैं पढ़ाऊँ उसे दिमाग में भर, फिर मच्छर आएंगे ही नहीं।’
भूरी को मच्छरों से बहुत डर लगता था। उनसे बचने के लिए उसने पढ़ना शुरू कर दिया। वह चीकू की बातें बड़े ध्यान से सुनती।
खेलने वाले साथी को किताबों में उलझा देख डिग्गू को बड़ा गुस्सा आया। ‘भूरी !यह क्या शुरू कर दिया। भूरी साहिबा बनना है क्या ! बिल्ली है –बिल्ली ही बनी रह ,चोला न बदल ।’
उसकी बात सुन चीकू बोला- ‘डिग्गू ,कल से तुमको भी पढ़ना पड़ेगा।’
‘मैं नहीं पढ़ूँगा । माँ कहती है -खेलोगे -कूदोगे बनोगे नबाब।’
‘तेरा दिमाग तो बुद्धू का बक्सा है। सारा दिन खेलने से नबाब नहीं गँवार बनते हैं। पढ़ने से कुछ बुद्धि तो आयेगी वरना सब उल्लू बनाएँगे।’
‘उल्लू — मतलब मुझे दिन में दिखाई देना बंद हो जाएगा!आधा अंधा हो जाऊंगा —हईया, तब तो जरूर पढ़ूँगा।’
अब उसकी भी पढ़ाई शुरू हो गई । कुछ दिनों बाद उन्हें स्कूल में भर्ती कर दिया गया । परीक्षा के दिन आ गए । चीकू को चिंता सताने लगी। लगता था भूरी-डिग्गू की नहीं उसकी परीक्षा है।
एक शाम चीकू उन दोनों को बाग में घूमाने ले गया । वहाँ एक पेड़ पर चिड़ा -चिड़ी बैठे थे। चिड़ी बोली – ‘भूरी तो चतुर लगती है ,परीक्षा में जरूर पास हो जाएगी ।’
‘ठीक कहा तुमने मगर, डिग्गू शैतान है, पढ़ने मेँ मन ही नहीं लगता। इसके पास होने मेँ शक है।’
भूरी तो अपनी प्रशंसा सुन हवा मेँ उड़ने लगी। सोचने लगी – ‘बस हो गई बहुत पढ़ाई, अब थोड़ा आराम करूंगी।’
डिग्गू का मुंह लटक गया। वह खिलंदड़ी जरूर था पर फेल भी नहीं होना चाहता था। उसने कसम खाई — ‘अगले पंद्रह दिनों मेँ वो मेहनत करूंगा –वो मेहनत करूंगा कि भूरी को पछाड़ न दिया तो मैं डिग्गू नहीं –।’
इन पंद्रह दिनों मेँ क्या हुआ, डिग्गू को कुछ पता नहीं। बस वह भला और उसकी किताब भली लेकिन भूरी –तौबा रे तौबा –कभी गुलाब से बतियाने लगती तो कभी धूप मेँ सो जाती।
दोनों की परीक्षा खत्म हुई । रिजल्ट का इंतजार होने लगा।
जिस दिन रिजल्ट निकला। सूरज भैया खूब चमचमाने लगे। लगता था बच्चों के पास होने की खुशी में वे भी खुश हो रहे हैं। भूरी –वह तो दिन चढ़े सोती रही और डिग्गू –उसका दिल करने लगा धुक —धुक –। आवाज आने लगी पास होऊँगा या फेल —पास होऊँगा या फेल । स्कूल अकेले जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था और वहाँ जाने को उतावला भी था ।
***
‘भूरी ,उठ -उठ —स्कूल रिजल्ट देखने चल।’
‘मुझे सोने दे —मैं नहीं जाती।’
‘न चल, मैं तो जा रहा हूँ।’
‘तू जाकर क्या करेगा ! तेरा तो नाम ही नहीं होगा पास होने वालों की लिस्ट में।’
‘तेरा तो होगा।’
‘मेरा क्यों नहीं होगा ! भूरी ताव में आ गई।’
‘ठीक है तो तेरा ही देख आता हूँ।’
‘हा–हा, जा देख आ , मूर्ख कहीं का!’ भूरी बकझक करके फिर सो गई ।
डिग्गू कूदता फाँदता ठीक ब्लैक बोर्ड के सामने जा डटा । पहली नजर में ही उसने अपना नाम देख लिया और उछल-उछल कर गाने लगा —
मैं तो पास हो गया
पास हो गया
बुद्धू की लिस्ट से
नाम कट गया
नाम कट गया
डिग्गू तो
राजा बन गया
राजा बन गया ।
एकाएक उसे भूरी का ध्यान आया — अरे पढ़ाकू बिल्ली का रिजल्ट तो देखा ही नहीं।
पर यह क्या ! एक बार , दो बार, पाँच -पाँच बार अपनी नाजुक सी गर्दन घुमाकर लिस्ट देखी लेकिन भूरी का नाम दिखाई नहीं दिया तो नहीं ही दिखाई दिया। भूरी के फेल होने का उसे बहुत दुख हुआ ।उसकी खुशी आधी हो गई । मुरझाया चेहरा लिए घर में घुसा ।
‘लौट आया रोता सा मुँह लिए ! कहती थी , न जा –न जा । मालूम था फेल हो जाएगा तो गया क्यों ! भूरी घुर्राई।’
डिग्गू धीरे से बोला — ‘भूरी–तेरा तो ब्लैकबोर्ड पर नाम ही नहीं है।’
‘पागल हो गया है क्या ! ऐसा हो ही नहीं सकता।’
शक का कीड़ा लेकिन उसके दिमाग में घुस गया था। भागी स्कूल की ओर। डिग्गू और चीकू भी उसके पीछे गए। इन तीनों की छ्ह आँखें कम से कम तीन बार ब्लैकबोर्ड पर घूमीं-फिसलीं पर भूरी के नाम से नहीं टकराईं। अब तो भूरी रोने लगी।
चीकू को उस पर गुस्सा तो बहुत आया पर अपने पर काबू रखते हुए बोला- ‘भूरी, चिड़ी ने तुम्हारी जरा सी तारीफ क्या कर दी, तुम तो फूल कर कुप्पा हो गई। पढ़ना भी छोड़ दिया। जब देखो आराम फरमाती या धूप सेकती रहती। पढ़ने वालों का पहला काम है किताब से प्यार करना। बिना पढ़े परीक्षा में कोई पास होता है क्या ! पहले काम फिर नाम।’
भूरी को अपनी गलती मालूम हो गई और यह भी समझ गई कि बुद्धू भी बुद्धिमान हो सकता है।
— सुधा भार्गव
बढ़िया कहानी !
बढ़िया कहानी !