मालिनी सम छंद एवं कुंडलिया
मालिनी (सम छंद)
नगण नगण मगण यगण यगण – 15 वर्ण
रस रंग लय मोरा फ़ाग हारा जहाँ है
सुख दुःख कर मोरा प्राण प्यारा जहाँ है
चल सखि चल जाऊं वाहि तारा बनूँगी
अंसुवन भरि नैना नेह धारा जहाँ है।।
“कुंडलिया”
सखि आयो मोर बसंत, तनि गाओ रे फ़ाग
लगाओ उनहि तन रंग, दुलराओ रे राग
दुलराओ रे राग, मोर पिय जाए न दूर
लियो मोर अनुराग, चोरे नैनन कर नूर
कह गौतम कविराय, विरह की बातें लखि लखि
चित्त गयो अकुलाय, जिरह नहि गाऊँ रे सखि।।
महातम मिश्र (गौतम)
वाह !
सादर धन्यवाद विजय सर जी