कहानी

कहानी : टूटे हुए सपनों में सच देखने लगी

नेरुल में जानकी ने समुद्र के किनारे कम्पनी के चार कमरों वाले फ्लेट को अपनी इच्छानुसार व्यवस्थित रूप से सजा के अपने आपको वातावरण के अनुकूल ढ़ाला . आने वाला हर दिन खोई आजादी का अहसास दिलाता था . सूर्य रश्मियाँ ऊर्जा , गतिशीलता , स्फूर्ति का  नया सवेरा और नया संदेश ले कर आती थीं  . दोनों पुत्रियाँ समय की रफ्तार के साथ अंगूर की बेल सदृश बढ़ने लगी . बड़ी पुत्री स्वरा छटी कक्षा में और छोटी पुत्री सुरभि  चौथी कक्षा में थी . दोनों प्रतिभाशाली और यथा रूप तथा  गुण चरितार्थ होता था .किन्तु दोनों को दादा – दादी , चाचा , बुआ के आभाव की रिक्तता महसूस होती थी .

जिन्दगी में उतार – चढ़ाव आते रहते हैं . सुख के बाद दुःख , दुःख के बाद सुख सृष्टि का नियम है . परिवर्तन ही गतिशीलता , संतुलन को जन्म देती है . विचारों में खोई हुई जानकी जानकी सोच रही थी , तभी उसकी नजर वहाँ के स्थानीय अखबार ‘ वाशी टाइम्स ’पर गई . जिसमें वह अपने लिए नौकरी ढूंढनए लगी , तभी उसकी नजर विज्ञापन पर पड़ी जिसमें लिखा था , ‘ कान्वेंट हाई स्कूल में हिंदी शिक्षिका चाहिए , जो अनुभवी , डायनमिक और सांस्कृतिक कार्यों में कुशल हो . ’

उसने अपने आप को इस योग्य समझा और जनक से पूछे बिना उस स्कूल में  अर्जी दे आई . अर्जी देने के बाद जानकी ने जनक से पूछा , “ मैं अब शिक्षण कार्य फिर से करना चाहती हूँ .” जनक नए रोब जमाते हुए उसे कहा ,  “ स्वरा , सुरभि अभी छोटी हैं जब बड़ी हो जाएं तब तुम नौकरी कर लेना . ”

कुछ दिनों बाद स्कूल से जानकी के नाम इंटरव्यू पत्र आ गया . विदुषी जानकी इंटरव्यू में सफल हो गई और शिक्षिका के पद के लिए नियुक्त कर दिया . नियुक्ति से तारा खुश हुई . लेकिन कुंठित जानकी ने प्रधानाध्यापक को नौकरी से न कर दिया और उन्हें कहा ,  “ मेरे पति नहीं चाहते कि मैं नौकरी करूं . ”

यह सुन प्रधानाध्यापक ने दिग भ्रमित जानकी को अच्छे से समझाया , “ तुम एम. ए , बी. एड हो . तुम्हारे में योग्यता है , शिक्षा की पूरी उपाधियाँ हैं , शिक्षण  का भी अनुभव है ,  विद्यार्थियों को पढ़ाकर ज्ञान बांटकर शिक्षा का उपयोग करो . घर की चार दीवारी से निकलो . अपना नाम , अपनी पहचान खुद बनाओ . ” प्रधानाध्यापक के प्रेरणात्मक , प्रभावात्मक वार्तालाप ने भ्रमित जानकी की हीन ग्रन्थियों को झकझोर दिया और स्वनिर्णय ले , नौकरी के लिए ‘ हाँ ’ कर दिया और उसी दिन से स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया . जानकी को अध्यापन कार्य खूब बढ़िया  लगने लगा , आत्म विशवास जागा और खोई हुई चेतना फिर से जागी . अक्सर जनक ओफिस के कामों से चन्नई टूर पर जाया करते थे . तब वह दस दिन के लिए चन्नई गए हुए थे . उनकी अनुपस्थिति में वह स्कूल में पढ़ाने जाने लगी . नए – नए अनुभवों , शिक्षकों – विदयार्थियों , आयामों के साथ सुंदर दिन व्यतीत होने लगे .

जब ये टूर से वापस घर आए तो इन्हें आते ही बच्चों ने बताया , “ पापा– पापा मम्मी तो स्कूल में पढ़ाने जाने लगी .” जानकी वहीं कमरे में खड़ी सोच रही थी कि ये हाँ करेंगे या न. तभी उसे लगा कि मेरी नौकरी करने के प्रति जो व्यवहार ससुराल में वही बर्ताब इनका बदला नहीं होगा. लेकिन जानकी आश्चर्यचकित रह गई . जब इन्होंने हँसकर अपनी सहमती प्रकट की . उस क्षण उसे अपर खुशी हुई कि प्रधानाध्यापक की प्रेरणा से खोई हुई पहचान , प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त हुई .

जानकी के भ्रम जाल का जाला टूट कर हवा में बिखर कर स्वतंत्र अस्तित्व का जामा पुनः पहना . उसका मुरझाया हुआ चेहरा अपनी उपलब्धियों से कान्तियुक्त , गरिमामय हो गया .  काफी सालों के बाद अपनी इस उपलब्धी को अपनी सखी दर्शन को  ख़ुशी – ख़ुशी चिट्ठी लिखी . चिठ्ठी के अंत में ‘ फिर’ लिखा था , जो ‘ फिर ’ दूर न था .

दुनिया के अनेक समाजों में महिलाओं के व्यक्तित्व विकास में , अपने पैरों पर खड़ी होने पर संकुचित विचारधाराएं , मानसिकताएं  रूढ़ियाँ एवं परम्पराएं बाधक हैं  . जिनसे महिलाओं के अधिकारों का हनन होता है . उनका वहाँ जीना दुश्वार हो जाता है . जो कुंठाओं , तनावों , शारीरिक , मानसिक बीमारियों को जन्म देता है . देश , समाज , घर निर्बल बनता है .

परिवार हित और समाज , देश के विकास के लिए स्त्रियों के प्रति बुजर्गों को पूर्वाग्रहों , शोषण , उत्पीडन , और भेदभाव की लीक से हटकर विचारों में सकारत्मक सोच में  व्यापकता लानी होगी .अगर वे न होते तो उसका खोया हुआ अस्तित्व पुनः प्राप्त न होता . जानकी ने स्त्री सशक्तिकरण की मिसाल बन समाज को नई  दिशा दी .

 

मंजु गुप्ता

जन्म : २१. २. १९५३ , ऋषिकेश , उत्तरांचल शिक्षा : एम.ए ( राजनीति शास्त्र ) , बी.एड शिक्षण : हिंदी शिक्षिका, जयपुरियार सीबीएससी हाईस्कूल, सानपाड़ा नवीमुंबई संप्रति : सेवा निवृत मुख्य अध्यापिका , श्री राम है स्कूल , नेरूल , नवी मुंबई। कृतियाँ :प्रांतपर्वपयोधि काव्य,दीपक नैतिक कहानियाँ,सृष्टि खंडकाव्य,संगम काव्य अलबम नैतिक कहानियाँ , भारत महान बालगीत सार निबंध,परिवर्तन कहानियाँ। प्रेस में : जज्बा ( देश भक्ति गीत ) रुचियाँ : बागवानी , पेंटिंग , प्रौढ़ शिक्षा और सामाजिकता प्रकाशन : देश - विदेश की विभिन्न समाचारपत्रों ,पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। उपलब्धियां : समस्त भारत की विशेषताओं को प्रांतपर्व पयोधि में समेटनेवाली प्रथम महिला कवयित्री , मुंबई दूरदर्शन से सांप्रदायिक सद्भाव पर कवि सम्मेलन में सहभाग , गांधी जीवन शैली निबंध स्पर्धा में तुषार गांधी द्वारा विशेष सम्मान से सम्मानित , माॅडर्न कॉलेज वाशी द्वारा सावित्री बाई फूले पुरस्कार से सम्मानित , भारतीय संस्कृति प्रतिष्ठान द्वारा प्रीत रंग में स्पर्धा में पुरस्कृत , आकाशवाणी मुंबई से कविताएँ प्रसारित , विभिन्न व्यंजन स्पर्धाओं में पुरस्कृत, दूरदर्शन पर अखिल भारतीय कविसम्मेलन में सहभाग । सम्मान : वार्ष्णेय सभा मुंबई , वार्ष्णेय चेरिटेबल ट्रस्ट नवी मुंबई , एकता वेलफेयर असोसिएन नवी मुंबई , मैत्री फाउंडेशन विरार , कन्नड़ समाज संघ , राष्ट्र भाषा महासंघ मुंबई , प्रेक्षा ध्यान केंद्र , नवचिंतन सावधान संस्था मुंबई कविरत्न से सम्मानित , हिन्द युग्म यूनि कवि सम्मान , राष्ट्रीय समता स्वतंत्र मंच दिल्ली द्वारा महिला शिरोमणी अवार्ड के लिए चयन आदि। संपर्क :19, द्वारका, प्लॉट क्रमांक 31, सेक्टर 9A वाशी, नवी मुंबई400703 भारत . फोन : 022 - 27882407 / 09833960213 ई मेल : [email protected]

One thought on “कहानी : टूटे हुए सपनों में सच देखने लगी

  • विजय कुमार सिंघल

    प्रेरक कहानी !

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