कहानी

कहानी : गुरुदक्षिणा 

मानस पटल पर महाभारत काल की घटना याद आती है जब गुरु द्रोणाचार्य ने उपेक्षित जाति के एकलव्य के हाथ का दांया हाथ का अंगूठा गुरु दक्षिणा में लेकर चोरी से सीखी धनुर्विद्या का बदला लिया. युगों के अंतराल के बाद समाज सेविका – शिक्षिका राधा ने इस खाई को पाटा.

भारत के पड़ोसी मित्र देश नेपाल के जिला धनगढी, गाँव बिगाऊ से एक नेपाली, अनपढ़ नवयुवक बहादुर काम की तलाश में वाशी, नवी मुम्बई में आया. उसे वाचमैन का काम सत्संग सोसाइटीमें मिल गया. उसके काम करने और अच्छी आदतों की वजह से सभी लोगों की आँखों का तारा बन गया. वह इतना शर्मिला था कि आँख उठाकर बात भी नहीं करता था. ठीक से हिंदी भी नहीं बोल पाता था. वह गँवार -निरक्षर और गरीब था. 

एक दिन दोपहर में जब राधा स्कूल से पढ़ाकर घर आई. तभी उसकी नजर बहादुर पर पड़ी. जो मुख्य दरवाजे की ओट में छिप कर हिंदी सीखो की किताब पढ़ रहा था. उसने जिज्ञासा से  उससे पूछा, ” तुम क्या पढ़ रहे हो ? ” उसने डरते, शर्माते और तुतलाते हुए कहा – ” मैं..हीं…दी.. हिंदी पढ़…ना चाहता….हूँ,….किता…ब से पढ़ने की कोशिश कर….रहा हूँ, स्कू…ल तो…कभी गया नहीं हूँ.” उसे उसकी बात दिल को छू गई, राष्ट्रीय भाषा हिन्दी के प्रति उसका लगाव ऐसा लगा जैसे एकलव्य का धनुर्विद्या से था और उसे कहा – ” हिंदी सीखने मेरे घर आ जाना.” यह सुनकर उसका दिल खुशी से झूम उठा और आँखें चमक उठीं. कहावत भी है – अंधा क्या चाहे दो आँखें. यही दशा बहादुर की भी थी. उसने ऐसा महसूस किया कि मन की उमंग आनंदोत्सव मना रही हो. 

अगले दिन उनके घर हाथ में कॉपी – पैन लिए आया और हिंदी की वर्णमाला के स्वर से पहले पाठ का श्री गणेश किया. वह रोज पढ़ने के लिए आने लगा. वह समझदार और प्रतिभाशाली था. जो भी समझाया जाता उसे याद करके लाता, हिन्दी का गृह कार्य भी करके लाता, शिकायत का मौका नहीं देता.उसकी प्रतिभा देख  दंग हो जाती.धीरे – धीरे उसने शब्द, वाक्य रचना और व्याकरण, संवाद आदि सब सीख लिया. अब तो हिंदी फराटे से बोलता और लिखता. उसकी पढ़ाई में ऐसी चेष्टा रहती जैसे बगुले की पानी में पड़ी मछली पर ताक. पढ़ाई में इतनी तल्लीनता को देखकर यह श्लोक उस पर खरा उतरता है –

काक: चेष्टा, वकोध्यानम:, स्वान निद्रा तथैवच.

 अल्पहारी गृहत्यागी विद्यार्थी पंचलक्षणम.

पढ़ाई के साथ – साथ उसमें आत्मनिर्भरता, साहस, सत्य, सेवा और शिष्टाचार आदि गुणों का विकास हुआ. संसार की पाठशाला का महत्त्व समझ आने लगा. जब उसे तनख्वाह का चेक मिलता तो वह पूछता, ” कैसे इस चेक को भरूं ? ” वह उसे भरना सिखाती. अब उसे हर लम्हा खुशियों, शिक्षा की उपलब्धियों से भरपूर लगता.

मेहनती बहादुर पर अपने परिवार की जिम्मेदारी होने के कारण रात में भी हिंदी माध्यम के स्कूल में वाचमैन का भी काम करता था. स्कूल के प्रधानाध्यापक उसके कामों से खुश थे. लेकिन उन्हें बहादुर में परिवर्तन दिखाई दिया. अब उन्हें पहलेवाला गँवार नहीं बल्कि पढ़ा- लिखा, तहजीबदार, साक्षरता से भरपूर बहादुर दिखाई दिया. उन्होंने उसकी प्रतिभा को देखकर नर्सरी का हिंदी शिक्षक बना दिया. 

बहादुर अपने नसीब को सराहा रहा था और राधा को. उसे नई दिशा, नया आयाम मिला. उसने उसे गुरुदक्षिणा देनी चाही तो राधा ने केवल राखी बंधवाई. वह आज भी इस धागे में बंधा रक्षासूत्र के प्यार को निभा रहा है.        

इक्कीसवीं सदी की राधा ने निरक्षर बहादुर को साक्षर बना गुरु दक्षिणा में लिया संवेदनाओं की राखी का स्वर्णिम प्रेम धागा.जबकि एकलव्य ने गुरु दक्षिणा में दांया अंगूठा काट कर कितना बड़ा दंड स्वीकार किया था. तब थी कितनी कुंठित, ईर्ष्यालु सीमा रेखा. सुयोग बुद्धि के पात्र का कितना बड़ा उपहास…….. ? निरंकुशता……….नकारात्मक सोच…. सदियों ने देखा, पढ़ा और सुना……..! राधा की सकारात्मक, उपयोगी, परहितकारी सोच ने समाज का दृष्टिकोण ही बदल दिया. शिक्षा के इस अर्क ने जीवन सौपान को शिखर दिया.

 

मंजु गुप्ता

जन्म : २१. २. १९५३ , ऋषिकेश , उत्तरांचल शिक्षा : एम.ए ( राजनीति शास्त्र ) , बी.एड शिक्षण : हिंदी शिक्षिका, जयपुरियार सीबीएससी हाईस्कूल, सानपाड़ा नवीमुंबई संप्रति : सेवा निवृत मुख्य अध्यापिका , श्री राम है स्कूल , नेरूल , नवी मुंबई। कृतियाँ :प्रांतपर्वपयोधि काव्य,दीपक नैतिक कहानियाँ,सृष्टि खंडकाव्य,संगम काव्य अलबम नैतिक कहानियाँ , भारत महान बालगीत सार निबंध,परिवर्तन कहानियाँ। प्रेस में : जज्बा ( देश भक्ति गीत ) रुचियाँ : बागवानी , पेंटिंग , प्रौढ़ शिक्षा और सामाजिकता प्रकाशन : देश - विदेश की विभिन्न समाचारपत्रों ,पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। उपलब्धियां : समस्त भारत की विशेषताओं को प्रांतपर्व पयोधि में समेटनेवाली प्रथम महिला कवयित्री , मुंबई दूरदर्शन से सांप्रदायिक सद्भाव पर कवि सम्मेलन में सहभाग , गांधी जीवन शैली निबंध स्पर्धा में तुषार गांधी द्वारा विशेष सम्मान से सम्मानित , माॅडर्न कॉलेज वाशी द्वारा सावित्री बाई फूले पुरस्कार से सम्मानित , भारतीय संस्कृति प्रतिष्ठान द्वारा प्रीत रंग में स्पर्धा में पुरस्कृत , आकाशवाणी मुंबई से कविताएँ प्रसारित , विभिन्न व्यंजन स्पर्धाओं में पुरस्कृत, दूरदर्शन पर अखिल भारतीय कविसम्मेलन में सहभाग । सम्मान : वार्ष्णेय सभा मुंबई , वार्ष्णेय चेरिटेबल ट्रस्ट नवी मुंबई , एकता वेलफेयर असोसिएन नवी मुंबई , मैत्री फाउंडेशन विरार , कन्नड़ समाज संघ , राष्ट्र भाषा महासंघ मुंबई , प्रेक्षा ध्यान केंद्र , नवचिंतन सावधान संस्था मुंबई कविरत्न से सम्मानित , हिन्द युग्म यूनि कवि सम्मान , राष्ट्रीय समता स्वतंत्र मंच दिल्ली द्वारा महिला शिरोमणी अवार्ड के लिए चयन आदि। संपर्क :19, द्वारका, प्लॉट क्रमांक 31, सेक्टर 9A वाशी, नवी मुंबई400703 भारत . फोन : 022 - 27882407 / 09833960213 ई मेल : writermanju@gmail.com

One thought on “कहानी : गुरुदक्षिणा 

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कहानी ! पर यह पहले भी वेबसाइट पर लग चुकी है !

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