जब सूरज करे अंधेरा….
जब सूरज करे अंधेरा, दीपक घात करे उजियारों से।
साज़िश का तूफान उठे जब, घर की ही दीवारों से॥
जब अपनो के हाथों में, लालच का खंज़र लालायित हो।
जब हमराही भी गैरों के, संकेतों पर संचालित हो॥
रिश्तों नातों का वज़ूद जब, केवल कहने भर का हो।
बाहर वालों से ज्यादा जब शत्रु, भाई घर का हो॥
मर्यादा तोडी जाये जब, अनुज ज्येष्ठ का मान हरे।
होनी जब होकर सवार, पथदर्शक का ही ज्ञान हरे॥
जब झूठ की कालिख़ इतनी हो कि, सच कालिख़ में ख़ो जाये।
जब अपनों की लाशों पर, अपना ही कोई मंगल गाये॥
जब अस्मत पर हमला हो, तब नीत रीत बेमानी है।
हर कीमत पर अस्मत रक्षा करना, धर्म निशानी है॥
जब अस्तित्व का संकट हो, तब धर्म अधर्म नही होता।
मानवता रक्षा से बढ़कर, कोई धर्म नही होता॥
तब अपने और पराये का, हर भेद मिटाना पडता है।
अर्जुन बनकर रणभूमि में, धनुष उठाना पडता है॥
सतीश बंसल
प्रिय सतीश भाई जी, बहुत बढ़िया, शुक्रिया.
वाह वाह !