फागुन मे बरसत रंग
फागुन मे बरसत रंग -पीकर भंग हुए मातंग /
भूल गये दिन रात ———कहें हम सुप्रभात/
कहें हम सुप्रभात ————
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उड़े अबीर – गुलाल – चमके अंग अंग अरु भाल /
तिरंगा मन मे बसा कर – भावना दिल मे सज़ा कर
तिरंगा मन मे बसा कर————–
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रंग भंग तरंग – उठा है ——- मनवा हुआ अनन्ग/
प्रेम का गीत सुने जब – जिया मे चाह जगे तब/
भंग हुआ रंगीन
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बाजे ताल मृदंग —–रंग संग रमा– आज मन भंग /
सुबह शाम लो नाम ——बोल मन राधे- राधे /
बोल मन राधे- राधे
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महके तन लाल गुलाल – हुआ आज गुलाबी गाल/
बिखर समाया रंग – श्याम तेरे स्वागत मे/
लट्ठमार की होली — श्याम तेरी नगरी मे ——-/
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भौजी के हाथ मे रंग – देवर करो नहीं हुड़दंग/
नहीं पछताओगे ———- कहाँ बच पाओगे —-/
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देवर पिया आज है भंग – लिए दूजे हाथ मे रंग,
होली आज हुई रंगीन
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प्रेम और उत्साह – जीवन जीने – की हो चाह
होली मन – बरसे रंग –
झूमे हिया पिया संग भंग
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राजकिशोर मिश्र ‘राज’
राज किशोर जी , फागुन में बरसत रंग ,होली का नज़ारा और भारत का बचपन याद दिला दिया .
आदरणीय भाई साहब सप्रेम नमस्ते रंगोत्सव की अशेष शुभकामनाएँ हौसला अफजाई के लिए आभार